हिमशिखर धर्म डेस्क
वीर शैवमत के प्रारंभिक पंच मठों में केदारनाथ का स्थान प्रथम है। इसके प्रथम महंत एकोरामाध्य कहे जाते हैं। स्कंध पुराण के अंतर्गत
है। एकक है। दीपा के अनादि सोते हैं। सतयुग के तीर्थ बदरीनाथ धाम की यात्रा से की यात्रा करने का विधान पूर्वकाल सेहो चला आ रहा है।
अब प्रश्न यह उठता है कि हिमालय तीर्थ धामों की यात्रा का आरम्भ कब से हुआ? पुराणों के अनुसार द्वापर युग तक भगवान् के साक्षात दर्शन हुआ करते थे। कलियुग के शुरू होते ही सदाचार में कभी और पापों के बढ़ जाने के कारण भगवान का साक्षात् दर्शन करना दुर्लभ हो गया। तब से भगवान के काष्ठ विग्रह, धातु विग्रह तथा पाषाण विग्रह की पूजा शुरू की जाने लगी। पुराणों के अनुसार पूर्व में जो फल भगवान के साक्षात दर्शन स्पर्श करने पर मिलता था, वहीं फल उनके विग्रह के दर्शन स्पर्श एवं पूजा
के पहले सात दर्शन होते. तत्काल तीचे रूपाल में प्राम की आस्था के केंद्र एवजी शास दर्शन व दर्शन भगवान के धामका अस्तित्व एवं वाहि •महत्व अपने स्थान पर यथावत बचा रहा। इस प्राचीन तीर्थ हो जाता है कि उत्तराखण्ड हिमालय का दर्शन क्षेत्र के तीर्थ धाम की यात्रा को सतयुग वाला कहा काल से लगातार चला आ रहा है।
केदारनाथ के प्रभाव के कारण उत्तराखण्ड के सर्गका को केदारखंड भी कहा जाता है। स्कंद पुराण के मेरी स्थिि अनुसार, महादेव को अतिप्रिय इस पुण्य स्थल क्षेत्र फा की पूलि का स्पर्श भी महापुण्यदायी है। महापाप करने वाला भी केदारनाथ दर्शन से पाप रहित हो भगवान जाता है। महापथ या भृगुपंच में भैरवप स्थान महाप्रल मे देव के प्रसाद की लालसा व रुद्रलोक पाने प्रतिि को प्रत्याशा में यहां कूदकर आत्महत्या करते उनक थे। नंदी पुराण के केदारकल्प के अनुसार की प्त करने से होगा। इसलिए जिस क्षेत्र में भगवान केदारनाथ भैरवप से आत्म विसर्जन करने पर आ
यह
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यह तीर्थ