बाबाजी की लीला: साधु का अग्नि बैंक

हिमशिखर खबर ब्यूरो

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सर्दी का महीना था कैंची आश्रम में बहुत ठंड थी बाबा नीमकरोरी तख्त पर विराजमान थे पास ही अनेक भक्त अंगीठी पर हाथ सेंक रहे थे। उसी समय एक साधु वहां आया वह आश्रम का वैभव देखकर दंग रह गया उसके मन में विरोधी भाव आने लगे वह सोचने लगा कि अगर यह बाबा हैं तोइन्हें किसी नदी के किनारे झोपड़ी डालकर रहना चाहिये था।

वह बाबाजी के पास जाकर बोला कि बाबा और यह सम्पदा, उसके चेहरे पर क्रोध स्पस्ट झलक रहा था…….बाबाजी ने मुस्कराते हुये उसे अपने पास बुलाया उसकी कमर से कुछ मैले व मुड़े हुये नोट निकाल लिये व बोले कि….तू यह रुपये अपने साथ क्यों ले जा रहा है साधु का बैंक तो अग्नि है…..इसके साथ ही बाबाजी ने वह रुपये अंगीठी में डाल दिये।

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अब तो वह आग बबूला हो गया तथा बाबाजी को खरी खोटी सुनाने लगा….

पर बाबाजी मुस्कराते रहे और बोले कि….तू बद्रीनाथ जा रहा है वहां अग्नि से मांग लेना तेरे सारे नोट मिल जायेंगे….जब वह चुप नहीं हुआ तो बाबाजी ने पास ही रखा चिमटा उठा लिया वह घबरा गया कि अब मार पड़ेगी…लेकिन यह क्या बाबाजी ने चिमटा अंगीठी में डाल दिया तथा लगातार नये करेंसी नोट तब तक निकालते रहे जब तक उसने मना नहीं किया……वह पानी पानी हो गया तथा उनके चरणों में गिर पड़ा…..बाद में बाबाजी ने उसे भोजन कराया तथा नया कंबल देकर विदा किया….

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