वैज्ञानिक दृष्टिकोण की पग-पग में ज़रूरत

प्रेम प्रकाश उपाध्याय “नेचुरल” उत्तराखंड

Uttarakhand

महान वैज्ञानिक श्री चन्द्रशेखर वेंकट रमन की याद में देश आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मना रहा हैं। नोबल अवार्ड से सम्मानित व रमन इफ़ेक्ट के प्रतिपादक सी वी रमन को हम सब भारतवासियों का नमन। किसी भी वैज्ञानिक को सही मायनों में याद करना, स्मृतियों में बनाये रखना तभी सार्थक हैं जब हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ जीते है औरों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं। परिणामस्वरूप इसके अनुरूप देश व समाज बना पाते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या हैं?। अगर हम किताबों, पुस्तकों,जर्नल्स से भारी-भरकम शब्दों को घटा दे, तो किसी भी घटना के होने अथवा ना होने के कारणों को सिलसिलेवार जानना, जानकर इकठ्ठा रखना विज्ञान है, बस। अकारण कुछ भी नही घटता हैं, होता हैं, बनता हैं, बिगड़ता है,अस्तित्व में रहता है या नही रहता हैं। सबके कारण हैं। कुछ को हम जानते है और बहुत कुछ नही जानते है। जिसको हम जानते है उसको तो कह देते है की इस कारण से हुआ, और जिसको नही जान पाते है,उसको राम जाने,अल्लाह जाने, गॉड नोज या तकदीर में यही लिखा कह देते हैं। दरअसल तब हम विज्ञान की अनुपस्थिति का ज़िक्र कर रहे होते हैं। ये अलग बात हैं हम उसे नही जानते है लेकिन फिर भी गैप (वैक्यूम)भरने के लिए उसका नामकरण कर देते है।

जीवन के तकरीब हर एक क्षेत्र में विज्ञान ने अपनी चमक छोड़ी हैं। बात चाहे इसी लेखनी की हो जिसने भोजपत्रों से चलकर डिजिटल नोट बुक तक की यात्रा आज तक तय कर ली हो या फिर पाषाण युग की चिंगारी से सेंसरों से टिमटिमाने वाले रौशनी के दुधिया बल्बों तक की हो, हर जगह विज्ञान व तकनीकी की मदद से हमने जमीं से आसमां तक नाप रखी हैं। यहाँ तक कि सूरज की अनुपस्थिति को भी बड़ी मात्रा में खारिज़ किया है। खाद्य व पोषण के मामलों में हजारों साल पहले जहां हम अन्न के लिए धरती के सीने में रैगा करते थे वही आज उन्नत बीज़ों, तकनीकी, हाइब्रिड व हाइड्रोपोनिक्स की मदद से रेस लगाते नज़र आ रहे है। संचार सेवा प्रकाश की गति तीस करोड़ मीटर प्रति सेकंड से चलकर पलक-पावड़े झपकते ही दुनियां जहां की खबरें, तस्वीरें, चलचित्र, आवाजे,संपर्क आदान-प्रदान हो जाती हैं। “दुनिया मेरी मुट्ठी में” अब ये मुहावरा नही सच है। यातायात में पहिये के आविष्कार के समय बाहें फैलाकर खुशी जताने वाला आदमी आज ध्वनि से भी अधिक तेज वाहनों की पीठ पर बैठकर सवारी का आनंद ले रहा है। संचार, कृषि, परिवहन, चिकित्सा, शिक्षा,इंजीनियरिंग, बागवानी,ओसनोग्राफी, इमेजिंग साइंस,स्पेस साइंस इत्यादि विज्ञान से मानव जीवन को सरल बनाये रखने की निरंतरता कायम हैं।

यही विज्ञान को लेकर जब हम समाज में जाते है और इसके साथ जीते है तो बहुत कुछ छूट जाता है। और वह हैं हमारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण। वैज्ञानिक दृष्टिकोण डोमिनेंट नहीं रहा है। इसके एवज में विज्ञान के प्रति आमजनों में अधकचरा, अधपका ज्ञान व समझ रहती है। विज्ञान जानना एक चीज़ है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना दूसरी। इसको ऐसे समझा जा सकता है- एक समृद्ध परिवार के लोग सभी संसाधनों, एचडी तकनीकी से युक्त कैमरे, टेलीविज़न, गैजेट्स, आई फोन, मोबाइल, लैपटोप, वाशिंग मशीन,गीज़र,

ए सी इत्यादि चीज़ों को आसानी से चला लेते हैं और इससे होने वाली सहुलियते, फायदे, समय की बचत की कर पाते है। लेकिन इसमें होने वाली क्रिया,काम करने की क्रमबद्धता,संगठित व व्यवस्थिति प्रक्रम, मैकेनिज्म के संदेश को न ही पड़ पाते है और ना ही आत्मसात कर पाते है। यही धारणा, तरीका, सँगठित ज्ञान, व्यवस्थित तरीका, अनुभव ही हमारे भीतर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अंकुरित करते है।

चीज़ों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखना,जानना, समझना, परखना, विचार करना और उनको करना न सिर्फ विज्ञानियो के लिए जरूरी है बल्कि यह देश, राष्ट, समाज के लिए ज्यादा जरूरी है, महत्त्वपूर्ण हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही हम जात-पात, छुआछूत, रंग, नस्ल, छोटा, बड़ा, काला, गोरावर्ण, अधर्म, तुष्टीकरण, भेद-भाव के अंतर को मिटा सकते है। क्योंकि मूल में हम जान पायंगे की सबकी बनावट, संरचना, कार्यविधि एक ही हैं। तो भेद कही बचता ही नही हैं। ये तो शिफऱ हैं। खास तौर से लोकतांत्रिक देशों की चुनी सरकारों के नुमाइंदे अपने स्तर से योजनाओं, रणनीतियों, कार्यवृत,भाषणों, सभाओ, गोष्ठियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखें और अपनाए तो धीरे-धीरे समाज सन्तुलित विकास की गति पायेगा।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण सभी दूसरे विचारधाराओं, थीम, सिद्धान्तों, विचारों में सबसे अधिक मूल्यवान, सार्थक हैं इसीलिए लोकल से ग्लोबल तक सर्व स्वीकार्य हैं।

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