मनुष्य योनि में जन्म लेने वाला हर कोई इंसान ही कहलाता है, लेकिन असल में इंसान कहलाने का सही हकदार वही है, जिसमें इंसानियत ज़िंदा है। मानव जीवन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम वाकई में इंसान हैं या नहीं। हमने इंसान के रूप में जन्म लिया है, इंसान का ही शरीर मिला है, तो हमारे भीतर इंसानियत भी होना जरूरी है।
दरअसल, इंसानियत को मापने का कोई मीटर नहीं बना। यही कारण है कि हर कोई अपने आप को अच्छा ही दिखाने की कोशिश करता है। वह जानता है, यहां जो दिखता है वही लोग मानते हैं। लोग सच में इस दिखावे को अच्छा मान भी लेते हैं, लेकिन ये फैसला केवल खुद से ही लिया जा सकता है कि हम में इंसानियत है या नहीं।
एक नगर के नजदीक होटल था। जिसका मालिक दयालु और सज्जन व्यक्ति था। होटल अच्छी आमदनी देता था। उस सेठ का जीवन सुखी से चल रहा था। परिवार में उसके सभी थे।
सेठ शिव सिंह की एक विशेषता थी कि वह अपने होटल में आने वाले हर गरीब और बेसहारा लोगों को मुफ्त भोजन कराता था। कई वर्षों तक यह कार्य निरंतर चलता रहा। वह रोज सुबह चिड़ियों को दाना दिया करता था। इतना ही नहीं वह सड़क पर पलने वाले आवारा कुत्तों को भी अपने हाथों से रोटी खिलाता। ऐसे करने पर उसे बहुत शांति मिलती थी, यह बात अमूमन अपने दोस्तों से कहा करता था।
एक दिन किसी सज्जन ने शिव सिंह से पूछा, आप ऐसा करते हैं तो आपको नुकसान नहीं होता। तब शिव सिंह ने कहा, ऐसा करने पर मुझे आत्मिक सुकून मिलता है।
सीख – इंसान तो सभी होते हैं लेकिन इंसानियत कुछ इंसानों में होती है। सही मायनों में असली इंसान वो हैं जो दूसरों के दुख में उन्हें खुश कर अपनी खुशियां खोजें।