होलिका दहन के लिए सिर्फ इतना शुभ मुहूर्त, समय और पूजा विधि देखें

हिमशिखर धर्म डेस्क

आज रात होलिका दहन किया जाएगा और अगले दिन यानी शुक्रवार को रंगों वाली होली खेली जाएगी। हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जा है और इस छोटी होली भी कहा जाता है। होलिका दहन में तिथि, भद्रा और शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखा जाता है। लेकिन होलिका दहन पर इस बार रात 11 बजकर 26 मिनट तक भद्रा का साया रहने वाला है।शास्त्रों के अनुसार, होलिका दहन कभी भी भद्रा काल में नहीं करना चाहिए। इसलिए लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि आखिर पूरे दिन भद्रा का साया रहने से होलिका दहन के लिए शुभ समय क्या होगा, आइए जानते हैं…

इसे देश के साथ-साथ विदेशों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। रंगों का त्योहार होली हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है और फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है।

होली और रक्षा बन्धन दो ऐसे त्योहार है जिन पर भद्रा का साया सदैव रहता है। ऐसे में हर जागरूक धार्मिक नागरिक की आस्था को कहीं न कहीं ठेस भी पहुंच सकती है और तो और व्यक्ति सही और गलत का निर्णय नहीं कर पाता है। तब किसी न किसी जागरूक नागरिक या विषय के जानकार का यह दायित्व बनता है कि किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावना आहत न हो और सही तथ्यों की जानकारी भी हो जाय। यद्यपि हमारे देश में बहुत से पंचांग तिथि नक्षत्रों की जानकारी देते हैं और भारतीय जनमानस तदनुरूप कार्य करता है, अतः पंचांग प्रवर्तकों पर यह सम्पूर्ण दायित्व निर्भर करता है कि वह अपने द्वारा की गई गणना को सटीक रूप में प्रस्तुत करें जिससे हम उस पर विश्वास व भरोसा भी कर सकते हैं। फिर हम कुछ लोग अधूरी जानकारी या सुन सुनाई बातों को मान कर उसी पर विश्वास कर अपनी मति का सदुपयोग करना ही नहीं चाहते हैं और भ्रम की स्थिति पैदा कर अनावश्यक विवाद खड़ा कर अपनी धार्मिक भावना की तौहीन करते हुए उसका मजाक बना देते हैं। इसलिए पंचांगों में जो निर्धारण किया गया है तदनुरूप मानना श्रेयस्कर है। यह विवाद /चर्चा सदैव रहती है कि भद्रा में होलिका दहन व रक्षा बन्धन नहीं करना चाहिए।

पंडित हर्षमणि बहुगुणा के अनुसार इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को प्रातः 10/41 बजे से प्रारम्भ हो रही है जो अगले दिन 14 मार्च को मध्याह्न 12/27 बजे तक है। पूर्णिमा प्रारम्भ होने पर भद्रा भी प्रारम्भ हो जाती है, और पूर्णिमा के मान के आधे समय तक रहती है। अर्थात् इस पूर्णिमा का मान 25 घण्टे/46 मिनट है अतः भद्रा 12 घण्टे/53 मिनट तक रह कर रात 11/31 बजे तक रहेगी। सूर्यास्त का समय दोनों दिन 6/ 19 है और होलिका दहन प्रदोषकाल में किया जाता है। जो केवल 13 मार्च को ही है। परन्तु भद्रा में होलिका दहन नहीं होगा तो फिर कब किया जाय? यह प्रश्न हर किसी के जहन में रहेगा ही। अतः मुहूर्त कार मनीषियों की बात को मान कर यह निर्णय लिया जा सकता है कि यदि दिन की भद्रा रात्रि में हो और रात की भद्रा दिन में हो तो उसे प्रतिकूल काल वाली भद्रा माना जाता है । यहां यह कहना समीचीन है कि कृष्ण पक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी तथा शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा की भद्रा दिन की भद्रा होती हैं यह भद्रा तिथि के पूर्वार्द्ध में होती हैं। अतः पूर्णिमा को भद्रा रात में जो दोष कारक नहीं है, वह है। भद्रा में अपरिहार्य परिस्थितियों में शुभ कर्म किए जा सकते हैं इसके लिए शास्त्रकारों ने परिहार भी बताया है। विष्टिरंगारकश्चैव व्यतीपातश्च वैधृति: । प्रत्यरि जन्म नक्षत्रं मध्याह्यत् परत: शुभम्।।’ ‘अर्थात् जो भद्रा मध्याह्न से पहले प्रारम्भ हो जाती है उसे अशुभ और जो मध्याह्न के बाद प्रारम्भ होती है वह शुभ होती है। भद्रा के पुच्छ काल को शुभ माना गया: है । परन्तु अति आवश्यकता की स्थिति में भद्रा का मुख काल छोड़ कर शेष भाग में होलिका दहन किया जा सकता है। ‘ कार्येsत्यावश्यके विष्टे:मुखमात्रं परित्यजेत् ।

यदि प्रतिपदा का मान पूर्णिमा से अधिक हो तो अगले दिन भी होलिका दहन किया जा सकता था, पर इस बार प्रतिपदा का मान पूर्णिमा से अधिक तो है। अर्थात् पूर्णिमा का मान 25 घण्टे 46 मिनट है तथा प्रतिपदा का मान 26 घण्टे 7 मिनट है, किन्तु प्रदोष काल में 13 मार्च को ही पूर्णिमा है अतः 14 मार्च को होलिका दहन का प्रश्न हो ही नहीं सकता।

‘ मुहूर्त संहिता, मुहूर्त चिंतामणि, पीयूष धारा, निर्णय सिंधु आदि ग्रन्थों में कहा गया है कि अपरिहार्य परिस्थितियों में परिहार का प्रयोग किया जा सकता है। अतः अधिक संशय को त्याग कर 13 मार्च को प्रदोषकाल के बाद होलिका दहन किया जाएगा। और रंग, धूलिवंदन, धूलिधारण 14 मार्च को होगा। कहीं भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ऐसे में पंचांगों में जो निर्णय दे रखा है वही सर्व मान्य है। यह सम्भव हो ही नहीं सकता है कि पूर्वांचल या अन्त किसी पंचांग कारों ने 14 मार्च को पूर्णिमा समापन के बाद होलिका दहन लिखा हो अतः प्रदोषकाल 13 मार्च को होने से होलिका दहन 13 मार्च को ही दिखाया गया होगा, 14 मार्च किसी भ्रम का कारण हो सकता है,ऐसा अपवाद भी हो सकता है। अतः होलिका दहन 13 मार्च को रात ग्यारह बजकर 31 मिनट के बाद या भद्रा के पुच्छ काल 7 बजे से 8/18 बजे तक होना श्रेयस्कर है व धूलिवंदन 14 मार्च को होगा। शेष अपने विवेक से निर्णय लिया जा सकता है। आप सबको होली की हार्दिक शुभकामनाएं एवं मंगलमय भविष्य की शुभकामना।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन को अशुभ माना जाता है। यह होलिका दहन का दोष है। माना जाता है कि भद्रा के स्वामी यमराज होने के कारण इस योग में कोई भी शुभ कार्य वर्जित होता है। होलिका दहन भद्रा पुच्छ में किया जा सकता है। इस समय भद्रा का प्रभाव कम होता है।

उत्तराखंड विद्वत सभा के पूर्व अध्यक्ष पंडित उदय शंकर भट्ट कहना है कि पूर्णिमा के साथ भद्रा भी हो तो पूर्णिमा के रहते हुए पुच्छ काल में यानी भद्रा के आखिरी समय में होलिका दहन कर सकते हैं।

पंडित हरषमणि बहुगुणा कहते हैं कि होली और रक्षा बन्धन दो ऐसे त्योहार है जिन पर भद्रा का साया सदैव रहता है। पंचांगों में जो निर्धारण किया गया है तदनुरूप मानना श्रेयस्कर है। यह विवाद / चर्चा सदैव रहती है कि भद्रा में होलिका दहन व रक्षा बन्धन नहीं करना चाहिए। सही है परन्तु हम स्वयं विचार करें कि पण्डित जी ने जो विवाह लग्न बना रखा है क्या हम उसके अनुसार चलते हैं। विवाह नक्षत्र के समाप्त होने के बाद विवाह की रश्म क्या पूरी नहीं करते हैं? अपितु “सब चलता है” का वाक्य बोल कर काम करते हैं। कितनी ही जगह बारात घर जिस दिन खाली है, उस दिन वैवाहिक रश्म पूरी करते हैं। यह आलोचना नहीं अपितु एक सच्चाई है। आश्चर्य तो तब होता है जब कोई व्यक्ति सही तर्क देता है तो उसके विरोध में कितने ही लोग खड़े हो जाते हैं। पर आज चर्चा का विषय होलिका दहन का है। कब होगा होलिका दहन इस पर कुछ लोगों ने प्रेक्षा की।

इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा छ: मार्च को सायं 4/19 बजे से प्रारम्भ हो रही है जो अगले दिन सात मार्च को 6/11 बजे तक है। पूर्णिमा प्रारम्भ होने पर भद्रा भी प्रारम्भ हो जाती है, और पूर्णिमा के मान के आधे समय तक रहती है। अर्थात् इस पूर्णिमा का मान 25 घण्टे/52 मिनट है अतः भद्रा 12 घण्टे/56 मिनट तक रह कर रात (सुबह) पांच बजकर पन्द्रह मिनट तक रहेगी ( 5/15 बजे प्रातः तक)। सूर्यास्त का समय दोनों दिन 6/14 है और होलिका दहन प्रदोषकाल में किया जाता है। जो केवल छ: मार्च को ही है। परन्तु भद्रा में होलिका दहन नहीं होगा तो फिर कब किया जाय? यह प्रश्न हर किसी के जहन में रहेगा ही। अतः मुहूर्त कार मनीषियों की बात को मान कर यह निर्णय लिया जा सकता है कि यदि दिन की भद्रा रात्रि में हो और रात की भद्रा दिन में हो तो उसे प्रतिकूल काल वाली भद्रा माना जाता है। यहां यह कहना समीचीन है कि कृष्ण पक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी तथा शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा की भद्रा दिन की भद्रा होती हैं यह भद्रा तिथि के पूर्वार्द्ध में होती हैं। भद्रा में अपरिहार्य परिस्थितियों में शुभ कर्म किए जा सकते हैं इसके लिए शास्त्र कारों ने परिहार भी बताया है।
विष्टिरंगारकश्चैव व्यतीपातश्च वैधृति:।
प्रत्यरि जन्म नक्षत्रं मध्याह्यत् परत: शुभम्।।’
अर्थात् जो भद्रा मध्याह्न से पहले प्रारम्भ हो जाती है उसे अशुभ और जो मध्याह्न के बाद प्रारम्भ होती है वह शुभ होती है। भद्रा के पुच्छ काल को शुभ माना गया: है । परन्तु अति आवश्यकता की स्थिति में भद्रा का मुख काल छोड़ कर शेष भाग में होलिका दहन किया जा सकता है।
कार्येsत्यावश्यके विष्टे:मुखमात्रं परित्यजेत् ।
यदि प्रतिपदा का मान पूर्णिमा से अधिक हो तो अगले दिन भी होलिका दहन किया जा सकता था, पर इस बार प्रतिपदा का मान पूर्णिमा से कम है। अर्थात् पूर्णिमा का मान 25घण्टे 52 मिनट है तथा प्रतिपदा का मान 25 घण्टे 31मिनट है। अतः सात मार्च को होलिका दहन का प्रश्न हो ही नहीं सकता।

मुहूर्त संहिता, मुहूर्त चिंतामणि, पीयूष धारा, निर्णय सिंधु आदि ग्रन्थों में कहा गया है कि अपरिहार्य परिस्थितियों में परिहार का प्रयोग किया जा सकता है। अतः अधिक संशय को त्याग कर छ: मार्च को प्रदोषकाल के बाद होलिका दहन किया जाएगा। और रंग, धूलिवंदन, धूलिधारण सात मार्च को होगा। कहीं भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ऐसे में पंचांगों में जो निर्णय दे रखा है वही सर्व मान्य है। यह सम्भव हो सकता है कि पूर्वांचल में कहीं सात मार्च को सूर्यास्त पूर्णिमा समापन से पहले हो रहा होगा तो प्रदोषकाल सात मार्च को होने से होलिका दहन सात मार्च को दिखाया गया होगा, ऐसा अपवाद भी हो सकता है। परन्तु इलाहाबाद से पश्चिमी भागों में यह स्थिति नहीं हो सकती है। अतः होलिका दहन 06 मार्च को बाद होगा व धूलिवंदन सात मार्च को होगा। शेष अपने विवेक से निर्णय लिया जा सकता

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