आज गणेश चतुर्थी है। प्राचीन समय में इसी तिथि पर भगवान गणेश प्रकट हुए थे। पूजन में कई तरह की चीजें गणेश जी को चढ़ाई जाती है, लेकिन ध्यान रखें तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाना चाहिए। गणेश जी का को एकदंत कहा जाता है, क्योंकि उनका एक दांत टूटा हूआ है। जानिए गणेश जी से जुड़ी ऐसी ही कुछ मान्यताएं-
भगवान गणेश को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं?
एक खास प्रकार की घास है दूर्वा। गणेश जी को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं, इस संबंध में अनलासुर नाम के असुर की एक कथा प्रचलित है। पुराने समय में अनलासुर के आतंक की वजह से सभी देवता और पृथ्वी के सभी इंसान बहुत परेशान हो गए थे। तब देवराज इंद्र, अन्य देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव के पास पहुंचे। शिवजी ने कहा कि ये काम सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। इसके बाद सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान गणेश के पास पहुंचे।
देवताओं की प्रार्थना सुनकर गणपति अनलासुर से युद्ध करने पहुंचे। काफी समय तक अनलासुर पराजित ही नहीं हो रहा था, तब भगवान गणेश ने उसे पकड़कर निगल लिया। इसके बाद गणेश जी के पेट में बहुत जलन होने लगी। जब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर गणेश जी को खाने के लिए दी। जैसे ही उन्होंने दूर्वा खाई, उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई।
गणपति की सवारी मूषक क्यों है?
सतयुग की कथा है। उस समय एक असुर मूषक यानी चूहे के रूप में पाराशर ऋषि के आश्रम में पहुंच गया और पूरा आश्रम कुतर-कुतर कर नष्ट कर दिया। आश्रम के सभी ऋषियों ने गणेश जी से मूषक का आतंक खत्म करने की प्रार्थना की। गणेश जी वहां प्रकट हुए और उन्होंने अपना पाश फेंककर मूषक को बंदी बना लिया। तब मूषक ने गणेश जी से प्रार्थना की कि मुझे मृत्यु दंड न दें। गणेश जी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और वर मांगने के लिए कहा। मूषक का स्वभाव कुतर्क करने का था, उसने कहा कि मुझे कोई वर नहीं चाहिए, आप ही मुझसे कोई वर मांग लीजिए।
गणेशजी उसके कुतर्क पर हंसे और कहा कि तू मुझे कुछ देना चाहता है तो मेरा वाहन बन जा। मूषक इसके लिए राजी हो गया, लेकिन जैसे ही गणेश जी उसके ऊपर सवार हुए तो वह दबने लगा। उसने फिर गणेश जी से प्रार्थना की कि कृपया मेरे अनुसार अपना वजन करें। तब गणेश जी ने मूषक के अनुसार अपना भार कर लिया। तब से मूषक गणेश जी का वाहन है।
इसका मनौवैज्ञानिक पक्ष यह है कि गणेश जी बुद्धि के देवता हैं और मूषक कुतर्क का प्रतीक। कुतर्कों को बुद्धि से ही शांत किया जा सकता है। इसीलिए गणेशजी को चूहे पर सवार दर्शाया जाता है।
गणपति को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाते हैं?
गणेश जी को दूर्वा, फूल और शमी पत्ते चढ़ाएं, लेकिन गणेश पूजा में तुलसी का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस संबंध में एक पौराणिक कथा है कि तुलसी ने भगवान गणेश से विवाह करने की प्रार्थना की थी, लेकिन गणेशजी ने मना कर दिया। इस वजह तुलसी क्रोधित हो गईं और उसने गणेश जी को दो विवाह होने का शाप दे दिया। इस शाप की वजह से गणेशजी भी क्रोधित हो गए और उन्होंने भी तुलसी को शाप देते हुए कहा कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा।
असुर से विवाह होने का शाप सुनकर तुलसी दुःखी हो गई। तुलसी ने गणेशजी से क्षमा मांगी। तब गणेशजी ने कहा कि तुम्हारा विवाह असुर से होगा, लेकिन तुम भगवान विष्णु को प्रिय रहोगी। तुमने मुझे शाप दिया है, इस वजह से मेरी पूजा में तुलसी वर्जित ही रहेगी।
गणेशजी का एक दांत कैसे टूटा?
गणेश जी का एक नाम एकदंत भी है यानी इनका एक ही दांत है। एक दांत कैसे टूटा, इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। एक दिन परशुराम शिव जी से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे। बाल गणेश ने परशुराम को शिव जी से मिलने से रोक दिया, क्योंकि उस समय शिव जी विश्राम कर रहे थे। इस बात से क्रोधित होकर परशुराम ने अपने फरसे से गणेश जी का दांत काट दिया था।
गणेश जी ने परशुराम के फरसे के प्रहार का विरोध नहीं किया, क्योंकि ये फरसा शिव जी ने ही उन्हें भेंट किया था। फरसे का प्रहार खाली न जाए, इसीलिए गणेश जी ने इस वार को अपने दांत पर झेल लिया और दांत टूट गया। इसके बाद से गणेश जी एकदंत कहलाए।
गणेशजी को क्यों प्रिय हैं मोदक?
एक कथा के अनुसार माता अनसूया ने गणेश जी को अपने यहां भोजन के लिए आमंत्रित किया था। उस समय वे खाना खाते ही जा रहे थे, लेकिन उनका पेट ही नहीं भर रहा था। तब माता अनसूया ने मोदक बनाए। मोदक खाते ही गणेश जी तृप्त हो गए। तभी से उन्हें मोदक का भोग लगाने की परंपरा प्रचलित हुई है।