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हिमशिखर धर्म डेस्क

रामकृष्ण परमहंस को गले में कैंसर हो गया था। उन्हें इस बीमारी की वजह से बहुत तकलीफ होती थी, लेकिन वे किसी को बताते नहीं थे। लोग जानते थे कि परमहंस जी किस पीड़ा से गुजर रहे हैं।

जब परमहंस जी की तकलीफ ज्यादा बढ़ती तो वे आंखें बंद करके बैठ जाते थे। किसी से कुछ बोलते नहीं। उनके भक्त बार-बार उनसे कह रहे थे, ‘आप तो माता काली के इतने निकट हैं, माता रानी आपकी सारी बातें सुनती हैं। आप ध्यान करते हुए माता से बार-बार कहें कि वे इस रोग को भगा दें। ये रोग चला जाए। मुझे स्वस्थ कर दें। आप बोलेंगे तो मां ऐसा कर भी देंगी, क्योंकि देवी मां आपकी सारी बातें मानती हैं।’

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परमहंस जी ने अपने भक्तों से कहा, ‘आप लोग बार-बार मुझे ये बातें न बोलें। मैं देवी मां का स्मरण अपने शरीर की बीमारी मिटाने के लिए नहीं कर सकता। मेरा और देवी मां का रिश्ता बहुमूल्य है और फिर वो तो मां हैं। वे जानती हैं कि मुझे क्या देना चाहिए। सोच-समझकर ही ये बीमारी मुझे दी होगी। उनको जो मेरे लिए ठीक लग रहा होगा, वह करेंगी। उनकी व्यवस्था में छेड़छाड़ करना नादानी होगी। वो जो मेरे लिए चाह रही हैं, वह ठीक ही होगा। मैं तो बस देवी मां का ध्यान करता हूं।’

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सीख – परमहंस जी से जुड़ी ये घटना में हमें संदेश दे रही है कि भगवान से कुछ मांगते समय बहुत सतर्क रहना चाहिए। भगवान से कुछ मांगना हो तो कुछ ऐसा मांगना चाहिए जो सिर्फ भगवान ही दे सकते हैं। भगवान से भगवान को ही मांगना चाहिए। एक बार भगवान हमारे जीवन में आ जाएं तो जीवन में जो भी स्थिति बने उसे भगवान की इच्छा मानकर स्वीकार करना चाहिए। अधिकतर लोग भगवान से भौतिक वस्तुएं मांगते हैं। जब इन वस्तुओं से जुड़ी इच्छाएं पूरी नहीं होती हैं तो दुख होता है। इसलिए ऐसी इच्छाओं से बचना चाहिए।

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