पंडित हर्षमणि बहुगुणा
महाराज दिलीप ने सन्तान प्राप्ति के लिए गो सेवा की। कवि कुलगुरु कालिदास ने महाराज दिलीप की गो सेवा का अनूठा वर्णन किया है।
महाराज दिलीप छाया की तरह नन्दिनी गाय का अनुसरण करते थे। गो सेवा से रोगों का निवारण भी होता है।
यह बहुत बड़ी विडम्बना है। इस हाड़ कंपाती हुई ठण्ड में घर से चलते समय रास्ते में लगभग तीस पैंतीस गौवंश दिखाई दिए। क्या जीवन है इन अवाक् प्राणियों का ? तब मन में आ रहा था कि कहीं स्थान मिलता व कोई सहयोगी बनता तो इन सभी गौ माताओं को रखना था, बस केवल एक इच्छा ही जाग्रत हो रही थी। मन का यह संकल्प कि अच्छी सन्तति की प्राप्ति हो। पर क्या गौमाता की ऐसी दुर्दशा के बाद क्या मन की कल्पना पूरी होगी? शायद असम्भव ! फिर एक टुकड़ा रोटी का गौग्रास के लिए भी गाय की आवश्यकता है।
सड़क पर बेसहारा हालत में बहुत-सी गायों को देख कर मन अत्यधिक ग्लानि से भर जाता है। हमने गायों का दोहन तब तक किया जब तक वह दुधारू रही और दुधारू नहीं रही तो उसे उसी के हाल पर छोड़ दिया। कोरोना महामारी की याद आई, आपदाओं की याद आई, मानव के अमानवीय व्यवहार की याद आई। इन सब का कारण हमारे अतिरिक्त और कोई नहीं है। जबकि भारतीय संस्कृति में यहां के मनीषियों ने गाय को माता का स्थान दिया है। गीता को एक मात्र शास्त्र माना और सम्पूर्ण उपनिषदों को गाय मान कर भगवान श्री कृष्ण को एक मात्र ग्वाला तब कहीं दूध के रूप में गीता रूपी अमृत प्राप्त हुआ।
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दन: ।
पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।
आज जब कुछ परमार्थी व्यापारियों ने गोवंश की रक्षा व सुरक्षा के लिए आगरा खाल में कुछ प्रयास किया तो मन में कुछ शान्ति की अनुभूति इसलिए हुई कि कहीं न कहीं धर्मात्मा लोग अपने कर्म पथ पर आगे बढ़ रहे हैं।
आज केवल गाय के विषयक थोड़ी सी जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। हो सकता है कि कल से हम गाय को घर पर रख कर उसे उसका खोया हुआ सम्मान दे सकें। तो आईए इस चर्चा में भाग लें।”
“विष्णु धर्मोत्तरपुराण में गोमाता को सर्वतीर्थमयी कहा गया है। लिखा है कि —-
*गवां हि तीर्थे वसतीह गङ्गा, पुष्टिस्तथा तद्रजसि प्रवृद्धा ।*
*लक्ष्मी करीषे प्रणतौ च धर्मस्तासां प्रणामं सततं च कुर्यात् ।।*
“”” *ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र में गौ (गाय) की महिमा*— “””
“”‘ 1– *ज्योतिषमें गोधूलिका समय विवाह के लिये सर्वोत्तम माना गया है*।
2– *यदि यात्रा के प्रारम्भ में गाय सामने पड़ जाय अथवा अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई दिखाई पड़ जाय तो यात्रा सफल होती है।*
3– *जिस घर में गाय होती है, उसमें वास्तुदोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है।*
4 — *जन्मपत्री में यदि शुक्र अपनी नीचराशि कन्या पर हो, शुक्र की दशा चल रही हो या शुक्र अशुभ भाव ( 6,8,12 )-में स्थित हो तो प्रात:काल के भोजन में से एक रोटी सफेद रंग की गाय को खिलाने से शुक्र का नीचत्व एवं शुक्र सम्बन्धी कुदोष समाप्त हो जाता है।*
5–पितृदोष से मुक्ति :–
सूर्य, चन्द्र, मंगल या शुक्र की युति राहु से हो तो पितृदोष होता है। यह भी मान्यता है कि सूर्य का सम्बन्ध पिता से एवं मंगल का सम्बन्ध रक्त से होने के कारण सूर्य यदि शनि, राहु या केतु के साथ स्थित हो या दृष्टि सम्बन्ध हो तथा मंगल की युति राहु या केतु से हो तो पितृदोष होता है। इस दोष से जीवन संघर्षमय बन जाता है। यदि पितृदोष हो तो गाय को प्रतिदिन या अमावस्या को रोटी, गुड़, चारा आदि खिलाने से पितृदोष समाप्त हो जाता है।
6— *किसी की जन्मपत्री में सूर्य नीचराशि तुला पर हो या अशुभ स्थिति में हो अथवा केतु के द्वारा परेशानियाँ आ रही हों तो सूर्य-केतु अरिष्ट होने के फलस्वरूप ग्रह दोष निवारणार्थ गाय की पूजा करनी चाहिये, दोष समाप्त होंगे।
7— *यदि रास्ते में जाते समय गोमाता आती हुई दिखायी दें तो उन्हें अपने दाहिने से जाने देना चाहिये, यात्रा सफल होगी।
8— *यदि बुरे स्वप्न दिखायी दें तो मनुष्य गो माता का नाम ले, बुरे स्वप्न दिखने बन्द हो जायेंगे।
9— *गाय के घी का एक नाम आयु भी है-‘आयु: हि घृतम्’। अत: गाय के दूध-घी से व्यक्ति दीर्घायु होता है। हस्तरेखा में आयु रेखा टूटी हुई हो तो गाय का घी काम में लें तथा गाय की पूजा करें।