हिमशिखर धर्म डेस्क

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संसार के प्रत्येक प्राणी को अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। इससे मुक्ति कभी नहीं मिलती है। यह बात और है कि किस कर्म का फल कब मिलता है। जो कर्म ज्यादा होते हैं उसे बाद में तथा जो कम होते है उसे पहले भोगने को मिलता है। वैसे इसका कोई एक ही पैमाना ना होकर परिस्थिति तथा दैवी कृपा से निर्धारण होते देखा या सुना गया है। यदि अच्छे कर्म ज्यादा हैं तो बुरे कर्मों का फल इसी जन्म में तथा अच्छे का फल अगले जन्म में या इसी जन्म के बाद के दिनों में भोगने को मिलता है।

कर्म अनिश्चित है, लेकिन फल निश्चित है। मानव को सब पता है मगर निवार्ध व बेखौफ होकर बुरे कर्म करता है। आखिर कब तक करेगा? बुरे कर्मो के कारण मानव अंधा हो रहा है और अंधाधुंध नीच कर्मो को अंजाम देता है। मानव आज दानव बनता जा रहा है। कर्म कभी नहीं छुपते, सौ पर्द भी कुछ नहीं कर सकते। कर्मो का पिटारा खुल जाता है। सजा भी मिल रहीे है मगर अक्ल ठिकाने नहीं आ रही है।

आज मानव खुुश हो रहा है कि बुरे कर्मो के कारण वह सब कुछ हासिल कर रहा है मगर उसे इस बात का इलम नहीं हो रहा है कि पल भर में सब धराशायी भी हो जाता है। आधुनिक समाज का मानव आज दानवों से भी घिनौने कर्म कर रहा है। ऐसे कर्म करते समय वह न तो दुनिया से डरता है और न ही भगवान से डरता है। बुरे कर्मो की सजा एक न एक दिन मिलती है।

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अवैध तरीकों से धन कमाकर, मजबूर लोगों का खून चूसकर आलीशान महल बनाने से कभी खुशी और शांति नहीं मिल सकती है। पापी लोगों को साक्षात सजा मिलती है। कर्म कभी नहीं छोड़ते यह अटल सत्य है। नीच कर्मों की सजा जरुर मिलती है। यह अमर सत्य है। कर्मो को सुधारना चाहिए मगर माया के जाल में फितरती व गिरगिट इंसान अंन्धा हो चुका है।

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मानव को एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होना चाहिए। पुण्य सदियों तक रहता है। पुण्य करो जीवन सुधर जाएगा। अच्छे कर्म करो मानव बनो दानवता छोड़ दो।

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