“पुरन हमारा सारा काम प्रकृति करती है।”

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कैंची आश्रम के निर्माण काल में बाबा जी एक उँची सी शिला पर विराजमान हो जाते थे। और भक्त लोग समतल भूमि पर बैठ जाते थे।शिला के साथ लग कर अतीस नाम का एक पहाड़ी वृक्ष का सूखा सा ठूँठ ( तना ) खड़ा था बिना हरियाली के । इस वृक्ष की आयु वैसे ही बहूत कम होती है। और वैसे भी ये वृक्ष अपनी आयू पुरी कर चूका था। लोगों ने इस डर से कि तेज़ हवा से ये ठूँठ किसी के उपर न गिर जाये, बाबा जी से उसे कटवाने के कहा । को बाबा बोल उठे,”नहीं इसकी जड़ में जल चडाओ ।” ये फिर हरा हो जायेगा ।”

लोग सोचने लगे कि वर्ष भर इतनी वर्षा होती है तब तो हरा भरा हूआ नही । परन्तु श्री माँ ने बाबा की उक्ति का मर्म समझ ठूँठ को गंगाजल से स्नान कराया और फिर उसका आरती पूजन किया ।

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कूछ ही दिनों में वृक्ष की शाखांये फूटने लग पड़ी , हरे पते आने लग पड़े ।और बड़ते बड़ते पेड़ शाखाओं,हरे पतों से भरपूर हो गया ।आज ये वृक्ष अपने जीवन दाता के उस शिला- स्थान के ऊपर छत्र – रूप में लहराता रहता है – अपनी कृतग्यता व्यक्त करते ।( इस वृक्ष के पतियों में श्री माँ कई भक्तों को राम नाम के दर्शन भी करवा चूकी है ) इस वृक्ष का फ़ोटो नीचे है ।

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