हरेला 2023: कहीं रस्म अदायगी बनकर न रह जाए पौधारोपण

हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

शिवजी का प्रिय माह सावन कल 17 जुलाई से शुरू हो रहा है। इस माह में शिवजी की विशेष पूजा की जाती है। सावन का महीना प्रकृति का उत्सव के लिए जाना जाता है।

पर्यावरण की खुशहाली और सावन की हरियाली का मधुर संबंध समस्त जीवन जगत के लिए उतना ही महत्व रखता है जितना स्थूल शरीर में प्राण का महत्व है। एक तरह से यह कहना कि सावन के बिना पर्यावरण का चक्र अधूरा व निर्जीव सा बन जायेगा, कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

साल के बारह महीनों में सावन उस सबसे खास महीना के रूप में आता है जो ब्रह्मांड में आकाश से लेकर पाताल तक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को नये सिरे से उर्जान्वित करता है। जिसे ऊर्जा के बल पर प्रकृति की समूची व्यवस्था अगले वर्ष तक सुचारु ढंग से गतिमान रहती है।

भीषण गर्मी में आसमान द्वारा पृथ्वी से सोख लिये गये जल भंडार को सावन की उमड़ती बादलों की झुंड पुन: धरती पर वापस लाती है। बूंद-बूंद को प्यासे जीव-जंतु, पेड़-पौधे, नदी-तालाब व पृथ्वी का पेट सावन में भर जाता है। जिससे मृत व सोयी पड़ी पारिस्थितिकी में खुशहाली व सर्वत्र ताजगी आ जाती है। सर्वत्र हरे-हरे वन उपवन छा जाते हैं।

जल संकट के दूर हो जाने से पूरा वातावरण खुशहाल हो जाता है। कभी जीर्ण-शीर्ण पड़े वृक्षों में प्रकृति को अब अधिक से अधिक कुछ देने की उत्कंठा जगी हो। खुद प्यासे जल श्रोतों में अब सबकी प्यास बुझा देने की आतुरता दिखती हो। यानि चारों तरफ देखें तो सावन अभावों को पछाड़कर पर्यावरण को शक्तिशाली बना देता है।

पौधा लगाने के बाद उसकी देख-रेख भी जरूरी

मानसून और सावन के आते ही देश भर में वृक्षारोपण शुऱू हो जाता है। मौसम के हिसाब से भी वृक्षारोपण के लिए बरसात का मौसम मुफीद होता है, लेकिन सावन के महीने में वृक्षारोपण का जो उफान दिखाई देता है, सावन खत्म होने के साथ ही अधिकांश जगहों पर देखा जाता है कि वो सारी सक्रियता ऐसे गायब हो जाती है जैसे गधे के सिर से सींग। समस्या, तकलीफ और नाराजगी का कारण यह है कि एक बार पौधा लगाने के बाद उसकी देख-रेख और उसको संभालने की जिम्मेदारी उठाता हर कोई नजर नहीं आता है।

धरती को हरा भरा बनाना जिम्मेदारी से बढ़कर मजबूरी 

पुराने जमाने में पेड़-पौधे लोगों की जिंदगी का एक अहम हिस्सा थे। अनेक सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में वृक्षों की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती थी। घरों में तुलसी का पौधा और आस-पास खाली पड़ी भूमि पर अन्य पौधे लगाना वृक्षों की उपयोगिता का प्रमाण था। विवाह मंडप को केले के पत्तों से सजाना, नवजात शिशु के जन्म पर घर के मुख्य द्वार पर नीम की टहनियाँ लगाना, हवन में आम की लकड़ियों का प्रयोग आदि ढेरों ऐसे उदाहरण है जिनसे तत्कालीन समाज में वृक्षों की उपयोगिता का बखूबी पता चलता है। किन्तु आज स्थिति इसके ठीक विपरीत है। घरों आस-पास पौधा लगाने का चलन दम तोड़ता जा रहा है।

आज जरूरत इस बात कि है की हम सच्चे मन और कर्म  से पौधा लगाएं और उसकी तब तक देखभाल करे जब तक वो अपनी जड़ों पर स्वयं खड़ा न हो जाए क्योंकि अपने और अपनी संतानों के लिए धरती को हरा भरा बनाना हमारी जिम्मेदारी से बढ़कर मजबूरी बनती जा रही है।

आइए ! सच्चे मन और कर्म से एक पौधा लगाने की पहल तो कीजिए। आपको हार्दिक अनुभूति और सुखद आनंद मिलेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *