हिमशिखर धर्म डेस्क
उत्तराखण्ड की पवित्र भूमि तपस्वियों, साधु-संन्यासियों के लिए प्राचीन काल से ही विशेष आकर्षण का केंद्र रही है। यहां का प्राकृतिक वातावरण इनकी बाहरी और आंतरिक साधनाओं को अनुकूलता प्रदान करता है। यदि हम यह कहें कि जो साधना अन्य स्थानों पर वर्षों में की जानी संभव हो पाती है, उसे ये सप्ताह या मास में संभव कर पाते हैं।
शीतकाल में इस पवित्र देवभूमि के कई स्थान सफेद बर्फ से पूरी तरह ढक जाते हैं। इसलिए उन इलाकों में रहने वाले स्थायी निवासी भी नीचे की ओर आ जाते हैं। ठंड के साथ ही खाने-पीने के साधनों का भी लगभग अभाव सा हो जाता है।
आने वाले दिनों में गंगोत्री क्षेत्र की पहाड़ियों पर बर्फ की हल्की चादर बिछने वाली है। कुछ ही दिनों में यह गंगोत्री धाम का पूरा इलाका मोटे बर्फ की सफेद चादर से ढक जाएगा। ऐसे में तापमान माइनस 10 तक चला जाएगा। इस कारण यहां के पक्षी भी अपना बसेरा कहीं ओर ढूंढने के लिए निकल पड़ेंगे। यहां रहने की बात सोचने मात्र से शरीर में कंपकंपी सी दौड़ जाती है।
लेकिन साधना का अर्थ ही है विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल ढालने की क्षमता पैदा करना। शायद इसीलिए भगवान शिव कैलाश की उस चोटी पर विराजमान रहते हैं, जहां आज भी पहुंच पाना असंभव सा है। उसके दर्शन मात्र किए जा सकते हैं। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए इस वर्ष भी शीतकाल में गंगोत्री क्षेत्र रहकर कई साधक साधना कर रहे हैं।
जिन महापुरुषों ने इस क्षेत्र में रहकर कठोर साधनाएं की, उनमें महर्षि महेश योगी, आचार्य श्रीराम शर्मा, स्वामी शिवानंद, स्वामी सुंदरानंद आदि अनेक नाम शामिल हैं। यह तथ्य हमें बताते हैं कि यद्यपि एक ओर पूरा समाज धन की, पद की लालसा में दौड़ा चला जा रहा है। तो, दूसरी ओर आज भी आध्यात्मिक साधना के द्वारा स्वयं को भौतिकता के मोह और बंधनों से मुक्त करने का प्रयास करने वालों में भी कमी नहीं आई है।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि हजारों में से कोई एक मेरे इस मार्ग पर चलता है, उन हजारों में से कोई एक चलता रहता है और उनमें से भी कोई मुझ तक पहुंचता है। इतना ही नहीं, भगवान कहते हैं कि उन मुझ तक पहुंचे साधकों में भी कोई ही मुझको सही अर्थों में जानता है। इस दृष्टि से यह संख्या भले ही कम हो लेकिन इसका प्रभाव समूची मानवता पर सकारात्मक ऊर्जा और सोच पर पड़ता है।
परमहंस स्वामी रामतीर्थ ने कहा है कि जब आप परम एकांत में स्वयं से जुड़ते हैं तभी आप समाज, देश और प्राणिमात्र के लिए हितकारी कार्य कर पाते हैं। जिन महान पुरुषों ने विदेशों में जाकर सनातन धर्म की ध्वजा को फहराया या फिर नर में नारायण का संदेश दिया, उनका संबंध इसी प्रकार की कठोर और एकांतिक साधना से सदैव जुड़ा रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बिना साधना के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं हो सकती है। ऊचांइयों पर उड़ने के लिए जरूरी है कि उन भौतिक नियमों से आप ऊपर उठें, जिनके कारण आप बंधे हुए हैं।