प्रकृति में नागों की उपयोगिता को समझने का दिन नाग पंचमी: भाई कमलानंद

नागपंचमी पूजा हमारे सनातन धर्म में ईश्वर को समग्ररूपेण देखने की परम्परा है। इसी वजह से हमने समस्त जड़-चेतन में परमात्मा को प्रत्यक्ष मानकर उनकी आराधना की है। यही कारण है कि जब हम ईश्वर के चैतन्य स्वरूप की बात करते हैं तो उसमें केवल मनुष्य ही नहीं अपितु समस्त पशु-पक्षियों का भी समावेश हो जाता है।

Uttarakhand

भाई कमलानंद

पूर्व सचिव, भारत सरकार

सनातन संस्कृति में प्रकृति और जीवों की पूजा अनादि काल से होती आ रही है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति में पाए जाने वाले समस्त जीवों से मनुष्य का एक खास आत्मीय संबंध देखा गया है। नाग पंचमी पर नाग देवता का पूजन भी उसी परंपरा की कडी है।

नाग

नागपंचमी का यह पर्व यह संदेश देता है कि नाग जाति की उत्पत्ति मानव को हानि पहुंचाने के लिए नहीं हुई है। नाग पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखते हैं। चूंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश है एवं नाग खेती को नुकसान करने वाले चूहे एवं अन्य कीट आदि का भक्षण कर फसल की रक्षा ही करते हैं। इस प्रकार यह हम पर नाग जाति का उपकार होता है।

अत: नाग को मारना या उनके प्रति हिंसा नहीं करना चाहिए । मूलत: नागपंचमी नाग जाति के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करने का पर्व है । यह पर्व नाग के साथ प्राणी जगत की सुरक्षा, प्रेम, अहिंसा, करुणा, सहनशीलता के भाव जगाता है । साथ ही प्राणियों के प्रति संवेदना का संदेश देता है।

को समर्पित है पंचमी

नागपंचमी का यह पर्व यह संदेश देता है कि नाग जाति की उत्पत्ति मानव को हानि पहुंचाने के लिए नहीं हुई है। नाग पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखते हैं। चूंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश है एवं नाग खेती को नुकसान करने वाले चूहे एवं अन्य कीट आदि का भक्षण कर फसल की रक्षा ही करते हैं। इस प्रकार यह हम पर नाग जाति का उपकार होता है।

अत: नाग को मारना या उनके प्रति हिंसा नहीं करना चाहिए । मूलत: नागपंचमी नाग जाति के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करने का पर्व है। यह पर्व नाग के साथ प्राणी जगत की सुरक्षा, प्रेम, अहिंसा, करुणा, सहनशीलता के भाव जगाता है । साथ ही प्राणियों के प्रति संवेदना का संदेश देता है।

माना जाता है कि शेषनाग के सहस्त्र फनों पर ही पृथ्वी का भार है। भगवान विष्णु भी क्षीरसागर में शेषशय्या पर विश्राम पाते हैं। शिवजी के गले में सर्प हार है। कृष्ण-जन्म पर नाग देवता की सहायता से ही वसुदेव यमुना पार करके वृंदावन आते हैं। समुद्र-मंथन के समय देवताओं की मदद के लिए वासुकि आगे आए थे। पुराणों में तो कई दिव्य नाग और नागलोक तक का जिक्र किया गया है। इन्हीं कथाओं और मान्यताओं के कारण हिंदू धर्म में नागों को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है और पंचमी तिथि को नाग देवता को समर्पित किया गया है।

नाग को मारा न जाए, सुरक्षित स्थान पर छोड़ा जाए

वर्षा ऋतु में जब सांपों के बिल में पानी भर जाता है तो वह बाहर निकल आते हैं और तब उन्हें मारा न जाए बल्कि उन्हें सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया जाए इसकी स्मृति कराने के लिए ही संभवतया श्रावण मास में यह पर्व आने का एक कारण है।

खेतों की रक्षा करते हैं नाग

भारत में कृषि जीविका का मुख्य जरिया रहा है और चूहे वगैरह से खेती में बहुत नुकसान होता है। सर्प या नाग इनको  नियंत्रण करते हैं। नाग चूहों का सफाया करके खेतों की रक्षा करते हैं और इस तरह संतुलन कायम करते हैं।

प्रतीक स्वरूप में किया जाए नाग पूजन

जो लोग नाग देवता का पूजन करना चाहते हैं उन्हें प्रतीक रूप में नाग पूजन करना चाहिए। कई लोग नागदेवता का पूजन के लिए उन्हें जबरन दूध पिलाने का प्रयास करते हैं। मगर इससे नागों को कष्ट पहुंचता है। नाग देवता पर कुंकुम, अक्षत, अबीर-गुलाल नहीं चढ़ाना चाहिए, इससे उन्हें तकलीफ होती है। यह दिन प्रकृति में उनकी उपयोगिता को समझने का दिन है। हमें प्रतीक स्वरूप में पूजन की महत्ता समझनी चाहिए।

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