- परिवार के सुख के लिए खुद के सुख का त्याग करने से रिश्तों में प्रेम बना रहता है
हिम शिखर ब्यूरो।
भगवान श्रीराम अपने तीनों भाइयों भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न से निस्वार्थ प्रेम करते थे। तीनो भाई भी श्रीराम के प्रति गहरी आस्था रखते थे।
जब श्रीराम, लक्ष्मण और सीता अयोध्या छोड़कर वनवास के लिए निकले, उस समय वहां भरत और शत्रुघ्न मौजूद नहीं थे। कुछ समय बाद जब भरत और शत्रुघ्न अयोध्या पहुंचे तो उन्हें पूरे घटनाक्रम की जानकारी मिली। उस समय तक राजा दशरथ का निधन हो चुका था।
ये बातें सुनकर भरत अपनी माता कैकयी से बहुत क्रोधित हो गए थे। भरत ने राज-पाठ स्वीकार करने से मना कर दिया और उन्होंने तय किया कि वे राम वापस अयोध्या लेकर आएंगे। भरत तुरंत ही श्रीराम को खोजने के लिए अयोध्या से निकल पड़े, साथ ही सभी मंत्री, अयोध्या के लोग भी भरत के साथ श्रीराम को वापस बुलाने के लिए चल दिए।
श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ चित्रकुट में ठहरे हुए थे। भरत-शत्रुघ्न के साथ अयोध्या के लोग भी चित्रकुट पहुंच गए। वहां सेना और अयोध्या के लोगों को रोककर भरत-शत्रुघ्न श्रीराम की कुटिया में पहुंचे। दोनों भाई राम के चरणों में गिर पड़े और वापस चलने के लिए निवेदन करने लगे।
भरत-शत्रुघ्न ने बताया कि पिता राजा का निधन हो चुका है। ये समाचार सुनकर श्रीराम दुखी हो गए। भरत ने कहा कि आप तुरंत अयोध्या चलें और राजपाठ संभालें। मैं आपका छोटा भाई आपके पुत्र समान हूंए कृपया मेरा निवेदन स्वीकार करें और मुझ पर लगे सभी कलंक को धोकर मेरी रक्षा करें।
श्रीराम ने भरत से कहा कि मैंने पिताजी को वचन दिया है कि मैं 14 वर्ष का वनवास पूरा करके ही अयोध्या वापस आऊंगा। तब तक तुम अयोध्या का पालन करो। तब भरत राम की चरण पादुका सिर पर रखकर अयोध्या लौट आए। उन्होंने अयोध्या के बाहर ही एक कुटिया बनाई और सिंहासन पर श्रीराम की चरण पादुका रखकर एक सेवक की तरह राजपाठ चलाया।
सीख – श्रीराम और भरत का ये प्रसंग हमें बताता है कि भाइयों के बीच परस्पर निस्वार्थ प्रेम होना चाहिए। जब भाई एक-दूसरे के सुख के लिए खुद का त्याग करते हैं तो इस रिश्ते में प्रेम हमेशा बने रहता है।