- डर में रस होता है। तभी तो लोग हारर मूवीज देखते हैं। टीवी चैनल्स पर जो आप देख रहे हैं, यह जानने के बाद भी आप क्यों आन कर लेते हैं अपना टीवी? पहचानिए अपनी इस मानसिकता को। तब आपको समझ आएगा ‘महामारी’ पर ओशो का वर्षों पूर्व दिया गया संदेश-
70 के दशक में हैजा महामारी का रूप ले चुका था। तब अमेरिका में किसी ने ओशो से प्रश्न किया कि – इस महामारी से कैसे बचे ?
ओशो ने जो समझाया वो आज कोरोना के सम्बंध में भी बिल्कुल प्रासंगिक है। ओशो ने कहा कि यह प्रश्न ही आप गलत पूछ रहे हैं, प्रश्न ऐसा होना चाहिए था कि महामारी के कारण मेरे मन में मरने का जो डर बैठ गया है उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए! इस डर से कैसे बचा जाए? बीमारी से ज्यादा डर है जो दुनिया के अधिकतर लोगों के भीतर बैठ गया है, उससे बचना बहुत ही मुश्किल है। महामारी से कम लोग, इसके डर के कारण लोग ज्यादा मरते देखे गए हैं। डर से ज्यादा खतरनाक इस दुनिया में कोई भी वायरस नहीं है। इस डर को समझिये।
संकट के दौर में देखा जाता है कि बहुत से लोग या तो विक्षिप्त हो जाते हैं या फिर मर जाते हैं। ऐसा पहले भी हजारों बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा। हर समस्या मूर्ख के लिए डर होती है, जबकि ज्ञानी के लिए अवसर! इस महामारी में आप घर बैठिए, पुस्तकें पढ़िए, शरीर को कष्ट दीजिए और व्यायाम कीजिये, योग कीजिये और एक माह में 15 किलो वजन घटाइए, चेहरे पर बच्चों जैसी ताजगी लाइये।
मुझे अगर 15 दिन घर बैठने को कहा जाए तो में इन 15 दिनों में 30 पुस्तकें पढूंगा और नहीं तो एक बुक लिख डालिये, ये भय और भीड़ का मनोविज्ञान सब के समझ नहीं आता है। ’डर’ में रस लेना बंद कीजिए। आमतौर पर हर आदमी डर में थोड़ा बहुत रस लेता है, अगर डरने में मजा नहीं आता तो लोग भूतहा फिल्म देखने क्यों जाते?
ओशो कहते है कि TV पर ऐसी खबरे सुनना या अखबार पढ़ना बंद करें। ऐसा कोई भी विडियो या न्यूज़ मत देखिये जिससे आपके भीतर डर पैदा हो। महामारी के बारे में बात करना बंद कर दीजिए, डर भी एक तरह का आत्म-सम्मोहन ही है। एक ही तरह के विचार को बार-बार लेने से शरीर के भीतर रासायनिक बदलाव होने लगता है और यह रासायनिक बदलाव कभी कभी इतना जहरीला हो सकता है कि आपकी जान भी ले ले।
महामारी के अलावा भी बहुत कुछ दुनिया में हो रहा है, उन पर ध्यान दीजिए। ध्यान-साधना से साधक के चारों तरफ एक प्रोटेक्टिव ओरा बन जाता है, जो बाहर की नकारात्मक उर्जा को उसके भीतर प्रवेश नहीं करने देता है, अभी पूरी दुनिया की उर्जा नाकारात्मक हो चुकी है। ऐसे में आप कभी भी इस ब्लैक-होल में गिर सकते हैं।
ध्यान की नाव में बैठ कर हीं आप इस झंझावात से बच सकते हैं। शास्त्रों का अध्ययन कीजिए और साधना कीजिए, विद्वानों से सीखें।