हिमशिखर पर्यावरण डेस्क
विनोद चमोली
मानसून से ठीक पहले मई माह में मौसम के तेवरों ने लोगों को डरा दिया है। पिछले कुछ दिनों से पहाड़ में बारिश होते ही अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाएं कहर बनकर टूट रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बंगाल की खाड़ी में चक्रवाती परिसंचरण, अरब सागर मे बना चक्रवाती परिसंचरण (गुजरात तट के पास) और पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता ने पहाड़ के मौसम का मिजाज बदल दिया है। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन को भी प्राकृतिक आपदाओं में तेजी का मुख्य कारण माना जा रहा है।
इन घटनाओं ने बढ़ाई चिंता
इस साल मई माह के मौसम में मानसून से पहले हो रही बारिश से लोग कांप उठे हैं। पिछले एक सप्ताह में पहाड़ में जगह-जगह अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाओं ने लोगों की बैचेनी बढ़ा दी हैं। बताते चलें कि 4 मई को चमोली जिले के घाट बाजार में अतिवृष्टि से 5 आवासीय भवन क्षतिग्रस्त हो गए। इसके ठीक एक दिन बाद 6 मई को टिहरी जिले के पिपोला गांव में बादल फटने से कई योजनाएं और रास्ते क्षतिग्रस्त हो गए। एक दिन पूर्व 11 मई को देवप्रयाग बाजार में बादल फटने से पांच दुकानें और आईटीआई भवन पूरी तरह जमींदोज हो गया। ऐसे में लोगों के मन में सवाल कौंध रहा है कि मानसून सीजन से पहले ही अतिवृष्टि की घटनाएं क्यों घट रही हैं।
क्या कहते हैं मौसम विशेषज्ञ
इस साल मई माह में नमी युक्त हवाएं पर्वतीय क्षेत्रों में बंगाल की खाड़ी और अरबियन सागर से आ रही हैं। गोविन्द बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक प्रो. आर.के. सिंह के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने के कारण पहाड़ में मानसून पूर्व की बारिश हो रही है। जबकि पश्चिमी विक्षोभ अप्रैल माह के अंत तक ही सक्रिय रहता है। इसके साथ ही बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के गुजरात तट के पास चक्रवाती परिसंचरण (साइक्लोनिक सर्कुलेशन) के साथ नमी युक्त हवाएं उत्तर की ओर आ रही हैं। ऐसे समय में जब नमी युक्त बादल पहाड़ में ऊंचाई वाले स्थान पर एकत्रित हो रहे हैं तो तापमान ठंडा होने के कारण हवा की अत्यधिक नमी पानी में बदलकर अतिवृष्टि कर रही है।
क्या कहते हैं बादल विशेषज्ञ
वहीं एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय भौतिक विभाग के सहायक प्रोफेसर डाॅ आलोक सागर गौतम ने बताया कि जलवायु परिवर्तन और स्थानीय मौसम में बदलाव के कारण आए दिन ज्यादा बारिश होने की घटनाएं घटित हो रही हैं। इस महीने हवा की गति तेज और पृथ्वी की सतह का तापमान ज्यादा होता है, जिससे ‘क्युमुलोनिंबस क्लाउड’ का फार्मेशन होता है और यह बादल पानी लेकर हवा में गतिमान रहते हैं। पूर्व से पश्चिम की ओर चलने वाली हवाएं बंगाल की खाड़ी से होकर उत्तर पश्चिम भारत में अधिक वर्षा कराती हैं। क्योंकि उत्तराखण्ड में बादल फटने के दौरान वर्षा मापने का कोई सिस्टम नहीं है, जिससे यह कह पाना मुश्किल होता है कि यह भारी बारिश है या बादल फटने की घटना।
जलवायु परिवर्तन ने बढ़ाई चिंता
प्रकृति के साथ की जा रही छेड़छाड़ का नतीजा आज हमारे सामने साफ दिखने लगा है। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि समय पर बारिश न होना, कम या अधिक बारिश होना, जलवायु परिवर्तन का संकेत है। जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढ़ रही है। बढ़ता तापमान और जलवायु परिवर्तन की ओर ध्यान न दिया गया तो प्राकृतिक आपदाओं की समस्या सुरसा के मुंह की तरह बढ़ने से इंकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में जरूरी है कि हम कुदरत के साथ तालमेल कर जीना सीखें।
क्या होता है बादल फटना
बादल फटना अतिवृष्टि का चरम रूप है। मौसम विज्ञान के अनुसार जब बादल बड़ी मात्रा में आर्द्रता यानी पानी के साथ आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वे अचानक फट पड़ते हैं। इसके कारण होने वाली बारिश 100 मिमी प्रति घंटा की दर या उससे अधिक हो सकती है। इस पानी के रास्ते में आने वाली हर वस्तु क्षतिग्रस्त हो जाती है। देखा होगा किं राह में आने वाले पक्के मकान भी ताश के पत्तों की तरह बह जाते हैं।
गर्मी के मौसम में का ठंडक का एहसास
अमूमन मई माह में चिलचिलाती धूप पड़ती है। लेकिन इन दिनों पहाड़ में ठंडी हवाएं ठंडक का एहसास करा रही हैं। यही कारण है कि कुछ दिनों से लोगों ने गर्म कपड़े तक निकाल दिए हैं। सुबह और सायं लोग स्वेटर पहने हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे में लाजमी है कि गर्मी के मौसम में ठंड होना बड़ी चिंता की ओर इशारा कर रही है।