परम पिता परमात्मा का रोहित रुद्र रूप…पापियों को देता है दण्ड

Uttarakhand

डाॅ स्वामी श्यामसुन्दरदास 

अर्थव 13/3 सूक्त ‘रोहितादित्यदैवतम्’ वाला है अर्थात् इस सूक्त का देवता आदित्य है। जो कि रोहित रूप में है। यह रोहित आदित्य भी रुद्र हो जाता है। उणादिकोष में रोहित की व्युत्पत्ति निम्न प्रकार की है-
‘‘रुहेरश्च लोवा’’

यहां रोहित के दो अर्थ लिए जा सकते हैं। एक यह कि रोहण करने वाला, सकल भुवनों तथा प्राणि-जगत् को पैदा करने वाला यह आदित्य। दूसरा भाव रोहित का रक्त-वर्ण है। रक्त-वर्ण अर्थात् लाल होना क्रोध का प्रतीक है। यह क्रोध का भाव भी यहां अपेक्षित है। इसकी पुष्टि इस सूक्त के प्रत्येक मंत्र के अंतिम चरण से ही हो जाती है। वहां आता है, ‘‘तस्य देवस्य क्रुद्धस्यैतदागी य एवंविद्वांसं ब्राह्मणं जिनाति’’ अर्थात् उस आदित्स की विभिन्न सृष्टियों के रहस्यों व उस सृष्टि के रोहण को जानने वाले विद्वान ब्राह्मण की जो हिंसा करता है, कष्ट पहुंचाता है, उसका यह अपराध उस क्रुद्ध देव के प्रति है ऐसा समझना चाहिए।

समग्र देवता इसी रोहितादित्य में समाविष्ट है अथवा यह कह सकते हैं कि सभी देवता इसी रोहितादित्य की विभूतियां हैं। कहा भी है-
रोहितादित्य अर्यमा है, वही वरुण है, वही रुद्र व महादेव है। ‘‘एतेअस्मिन् देवा एकवृतो भवन्ति‘‘। वे सब देव इस रोहितादित्य में एकवृत होकर रहते हैं। इस प्रकार यह आदित्य सर्वदेव रूप है। महर्षि दयानन्द तो आदित्य में पूर्ण ब्रह्म की सत्ता मानते हैं। इस आदित्य का क्रोध ही रुद्र है। यह परम पुरुष नारायण भगवान सहस्रशीर्ष, सहस्राक्ष तथा सहस्रपात है तो रुद्र को भी यह कहा गया है ‘‘स एव शतशीर्षा रुद्रः समभवत् सहस्राक्षः शतेषुधि’’ अर्थात् यह आदित्य ही एकसमय विष्णु हैं तो दूसरे समय वह रुद्र हैं।

इस विष्णु और रुद्र में भेद सत्व, रज और तम का ही है। एक ही परमपुरुष जब सत्वगुण को सक्रिय करता है त बवह विष्णु कहलाता है और जब वह रज और तम को चालू करता है तब वह रुद्र नाम से सम्बोधित होता है। वे ही परम पुरुष शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति के नाम से कहे गए हैं और आदित्य भी ये ही हैं।

इनके सम्बन्ध में आगे कहा –
रोहित ही मृत्यु है अर्थात् सबका मारक है। वही अमृतरूप है, वही सर्वत्र अभिव्याप्त तथा सबका रक्षक है। वह ही रुद्ररूप है। वसुदाता भी वही है। वसु के देने में तथा अभिवादन में वषट्कार व दिव्य पात्रता विद्यमान होती है।

यह रुद्र द्यावा पृथिवी के मध्य में स्थित हो चहुं ओर क्रुद्ध दृष्टि से देखा करता है और जो पापी व दुष्कर्मा होते हैं उन्हें दण्ड देता है।

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