हिमशिखर धर्म डेस्क
महर्षि व्यास के अनुसार, विश्व में मनुष्य से श्रेष्ठ और कुछ नहीं। उसी में परम चेतना को उभारने वाली विद्या का नाम अध्यात्म है। वस्तुत: अध्यात्म का लक्ष्य है- मनुष्य के अंदर छिपी शक्तियों और सत्प्रवृत्तियों को मनोवैज्ञानिक पद्धति से इतना आगे बढ़ाना कि व्यक्ति के जीवन में देवत्व छलकने लगे। दूसरी तरफ विज्ञान का लक्ष्य है प्रकृति तथा पदार्थ में छिपी शक्तियों की जानकारी प्राप्त करना, जिससे मनुष्य के जीवन में कोई भौतिक कष्ट न रहे और वह सुख-सुविधा युक्त जीवन जी सके। जीवन आत्मिक और भौतिक दोनों तत्वों से मिलकर बना है, इसलिए विज्ञान व अध्यात्म अलग-अलग होते हुए भी पूरक हैं।
विज्ञान का लक्ष्य है , गहरी से गहरी आध्यात्मिक सचाइयों का खुलासा करना और अध्यात्म का लक्ष्य है-वैज्ञानिक तथ्यों के पीछे छुपे कारणों की खोज करना। वैज्ञानिक यह पता लगाना चाहते हैं कि यह सृष्टि कैसे बनी और हम इंसान कैसे बने ? हमारे ग्रह के ऊपर मंडरा रहा एक टेलीस्कोप किसी ‘ बिग बैंग ‘ या महाधमाके के अवशेषों को ढूंढकर दिखाने का प्रयास कर रहा है। अनेकों प्रकाश वर्ष दूर के संकेतों को पकड़कर , हम अरबों वर्ष पहले हुई गतिविधियों की झलक देखने की कोशिश कर रहे हैं। वैज्ञानिकों में होड़ लगी है कि कौन सबसे पहले यह खोज दिखाए कि सृष्टि के शुरू में क्या हुआ था।
क्यों ? इंसान के भीतर यह इच्छा छुपी है कि वह खुद भी देख सके और दूसरों को भी दिखा सके कि ऐसी कौन सी शक्ति है , जिसने हमें सृष्टि में भेजा। शायद हर दिल में यह सिद्ध करने की इच्छा छुपी हुई है कि कहीं कोई महाशक्तिमान , अनंत ऊर्जा और ज्योति से संपन्न कोई प्रभु है और हम आत्मा हैं , उस प्रभु के अंश हैं। दूसरी ओर , जो आध्यात्मिक साधना में लगे हैं , वे वैज्ञानिक तथ्यों के पीछे छुपे कारणों का पता लगाने की कोशिश में हैं। वे प्रकृति के वैज्ञानिक नियमों में तो रुचि रखते हैं , पर वे उन नियमों से भी आगे जाना चाहते हैं और उस दिव्य नियम को खोजना चाहते हैं , जिसके द्वारा सब कुछ अस्तित्व में आया। आखिर वे नियम बने कैसे , किसके द्वारा , किन कारणों से , किस विधि से। वैज्ञानिक बाहरी यंत्रों के द्वारा अपनी खोज करते हैं , वैज्ञानिक इस भौतिक मंडल के ऊपर , चेतना के उच्चतर मंडलों में पहुँचकर अपनी खोज करते हैं। सभी धर्मों के ग्रंथ रूहानी अनुभवों और करामातों की बात करते हैं। कई लोग मौत जैसे अनुभव या नियर डेथ एक्सपीरिएंसिज का वर्णन करते हैं।
हम बहुत से लोग ध्यान या समाधि में दिव्य अनुभव पाने की बातें करते हैं। जिनको लोग करामात कहते हैं , वे और कुछ नहीं , बल्कि इस सृष्टि के कुछ उच्चतर नियम हैं , जिनसे कि हम अनजान हैं। वैज्ञानिक महसूस करने लगे हैं कि यह संसार इतना ठोस नहीं , जितना कि हमने सोचा था। वास्तव में जड़ पदार्थ कंपन करती ऊर्जा है जो कि भौतिक आँखों को ठोस प्रतीत होती है। जब हम संसार को मूल अवयवों में बाँट देते हैं , तो हमें ऊर्जा , ज्योति और ध्वनि ही मिलते हैं। करामात करने का अर्थ कुछ और नहीं , बल्कि इस ऊर्जा को पकड़ना है और विचारों एवं आत्मा की शक्ति से इससे काम लेना है। पहले हम सोचते थे कि दवाइयों से बीमारियाँ ठीक होती हैं। इधर मन और शरीर के आपसी संबंध की बात कही जा रही है। चिकित्सक शरीर को स्वस्थ करने के लिए पहले मन को स्वस्थ करने और मन को स्वस्थ करने के लिए आत्मा की शक्ति का इस्तेमाल करने की बात कहते हैं। कुछ चिकित्सा संस्थानों में चिकित्सक मेडिटेशन या ध्यान लगाने को कहते हैं।
एक जाँच से यह साबित हुआ है कि जो लोग मेडिटेशन या धार्मिक् शिविरों में समय बिताते हैं , वे शल्य चिकित्सा के बाद उन लोगों की तुलना में जल्दी स्वस्थ होते हैं , जो ऐसा नहीं करते हैं। विज्ञान और अध्यात्म के बीच की रेखाएँ अस्पष्ट होती जा रही हैं। यह फैसला इंसान को करना है कि वह सिर्फ अपने लिए जीए या दूसरों की सेवा के लिए। और इस ग्रह को बेहतर बनाने में अपना जीवन बिताए। कुछ लोग सिर्फ अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए जीते हैं। पर जो लोग उच्चतर शक्ति के संपर्क में आ जाते हैं , वे जान जाते हैं कि हमारी जिंदगी का सर्वोच्च लक्ष्य प्रेम करना और दूसरों की सेवा करना ही है। वैज्ञानिक भी सिर्फ अपने लिए नहीं जीते। वे दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने वाले साधनों की खोज में अपनी जिंदगी गुजार देते हैं। साधकों और भौतिक वैज्ञानिकों का लक्ष्य एक ही है। दोनों ही यहाँ प्रकृति के छुपे नियमों को खोजते हैं , उस उच्च सत्ता को खोजते हैं।
बिल्कुल, विज्ञान एवं अध्यात्मक एक-दूसरे के पूरक हैं।