हिमशिखर धर्म डेस्क
काका हरिओम्
अपने सुनिश्चित कार्यक्रम के अनुसार स्वामी रामतीर्थ मिशन देहरादून ने on line स्वाध्याय के माध्यम से प्रतीक रूप में अपने वार्षिकोत्सव का शुभारम्भ किया. आज उसका दूसरा दिन था.
स्वाध्याय के प्रथम सत्र में कल गीताजी के अध्याय 6 पर विचार करते हुए श्रीकृष्ण के इस कथन की चर्चा विशेषरूप से की गई, जिसमें भगवान् कहते हैं कि जो स्वयं कल्याण के लिए योग की साधना करते हुए अपने शरीर का परित्याग कर देते हैं, उन्हें दुर्गति प्राप्त नहीं होती.वह पवित्र और श्री सम्पन्न कुल में जन्म लेते हैं, जबकि कुछ अन्य योगियों के यहां.
आज के प्रथम सत्र में इसी कथन को विस्तार से समझने का प्रयास किया गया. प्रथम श्रेणी में वह साधक आते हैं, जिनमें अभी कामनाएं शेष हैं.वह अपने पुण्यों का स्वर्गादि लोकों में भोग करने के बाद भूलोक पर जन्म लेते हैं. पुण्य के साथ क्योंकि पाप भी जुड़ा है इसलिए मनुष्य के अलावा अन्य योनियों में जाने की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता. कर्मफल का हिसाब किताब जो पूरा करना है.
लेकिन जिनमें भोग की वासना पूरी तरह से समाप्त हो गई है, उनका जन्म योगियों के कुल में होता. यह अत्यन्त दुर्लभ है. वह उसी जन्म में मुक्त हो जाते हैं.
स्वाध्याय का दूसरा सत्र परमहंस बादशाह राम के प्रति क्योंकि समर्पित था इसलिए पहले दिन स्वामी जी के जीवन की संक्षिप्त झांकी pdf के रूप में रामप्रेमियों को भेजी गई. साथ ही इस मान्यता पर चिंतन किया, जिसके अनुसार लोगों की यह धारणा है कि स्वामी जी ने किसी को गुरु नहीं स्वीकार किया था. धन्ना जी को लिखे गए उनके पत्र बताते हैं कि वह कैसे शिष्य थे. अपने सद्गुरु के प्रति इस प्रकार का समर्पण बहुत कम देखने को मिलता है.
हरिद्वार में अपनी पत्नी, विमाता और पुत्र से न मिलने को लेकर जो प्रश्न किया जाता है, उस बारे सरदार पूरन सिंह ने जो अपनी पुस्तक राम जीवन गाथा में लिखा है उसका हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया गया कि कोई कवि या तत्व- ज्ञानी कभी भी कठोर नहीं हो सकता. ऐसा व्यवहार करके स्वामी जी ने संन्यास की मर्यादा का पालन किया था. यह सहज है. आगे भी स्वामी जी के ऐसे ही महत्वपूर्ण पहलुओं की चर्चा की जाएगी ताकि उनके व्यक्तित्व को सही तरह से आंका जा सके.