बहुगुणा को भारत रत्न देने की मांग, मेधा ने सीएम रावत को चेताया-केदारनाथ हादसे से लें सबक, प्रकृति से छेड़छाड़ करें बंद

 

Uttarakhand
मेलबोर्न विवि में प्राफेसर जाॅन स्टोन और उनकी पत्नी लिंडा पारलेन ने स्वर्गीय बहुगणा की स्मृति में पौधे लगाए
मेलबोर्न विवि में प्राफेसर जाॅन स्टोन और उनकी पत्नी लिंडा पारलेन ने स्वर्गीय बहुगणा की स्मृति में पौधे लगाए

मेलबोर्न/देहरादून। विश्व पार्यवरण दिवस पर चिपको नेता स्वर्गीय सुंदर लाल बहुगुणा को वर्चुअल माध्यम से श्रद्धांजलि देने वाले देश-विदेश के लोगों ने भरत सरकार से स्वर्गीय बहुगुणा को भारत रत्न देने की मांग की है।

मेलबोर्न विवि में जलवायु परिवर्तन से पोस्ट ग्रेजुएट कर रही स्वर्गीय बहुगुणा की पोती हरीतिमा बहुगुणा की ओर से आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत उनकी पोती सौम्या ने गंगा स्तुति गाकर की। उनके पुत्र प्रदीप बहुगुणा ने कहा कि स्वर्गीय बहुगुणा शारीरिक रूप से भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वे अपने विचारों में हमेशा जिंदा रहेंगे। उनकी याद में हर व्यक्ति एक पौधा लगाए और प्रकृति संरक्षण का संकल्प ले यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंन कहा कि स्वर्गीय बहुगुणा अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम कर प्रकृति से कम से कम लेने और उसका ऋण चुकाने की बात करते थे। जो कहते थे उसको अपने जीवन में भी उतारते थे। घटते भूजल के प्रति चेताते हुए उन्होंने पांच दशक से भी पहले चावल खाना इसलिए छोड़ दिया था कि धान का पौधा बहुत ज्यादा पानी लेता है। इसी तरह सेब खाना इसलिए छोड़ दिया कि इसकी पैकिंग के लिए बड़ी संख्या में पेड़ कटते हैं। कहते थे कि पानी की अपनी जरूरतों को यदि हमने कम नहीं किया और जल संरक्षण की क्षमता वाले पौधों का रोपण और वन संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो पानी के लिए तीसरे विश्वयुद्ध की नौबत आ सकती है। घटती कृषि भूमि और बढ़ती आबादी को देखते हुए उन्होंने वृक्ष खेती और फाइव एफ ट्री और वह भी चैड़ी पत्ती वाले फूड (भोजन) फाॅडर (चारा), फ्यूल (जलाउ लकड़ी) और फर्टीलाइजर (खाद) पौधे रोपने की सलाह दी। बड़े बांधों को स्थाई समस्या का अस्थाई समाधान करार देते हुए वे कहते थे कि हमें नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र को सघन वन से आच्छादित करना होगा। इससे जहां देश को स्थाई रूप से पानी मिल सकेगा वहीं नदियों का बहाव भी नियंत्रित होगा। इसके लिए उनका नारा था- धार ऐंच पाणी, ढाल पर डाला, बिजली बणावा खाला-खाला। यानी रन आफ द रिवर स्कीम से बिजली पैदा कर पहाड़ की चोटी पर पानी पहुंचा कर तीखे पहाड़ी ढालों पर सघन वनीकरण किया जाय।

उनके जीवन के बारे में बताते हुए प्रदीप बहुगुणा ने कहा कि 19 जून 1956 को टिहरी से 22 मील दूर पैदल चल कर सिल्यारा गांव में ंअपनी झोपड़ी डाल दी और जीवन संगिनी विमला नौटियाल से शादी के साथ ही उनकी शर्त मानते हुए राजनीति से सन्यास ले लिया। की। झोपड़ी में शुरू की गई पर्वतीय नव जीवन मंडल संस्था गांधी जी के अहिंसा के प्रयोग का केंद्र बनी। यहां से कई गांधीवादी कार्यकर्ता निकले। यहीं से सुंदर लाल बहुगुणा ने पहले अस्पृश्यता निवारण, मंदिर में हरिजन प्रवेश, शराबबंदी और फिर चिपको आंदोलन चलाया। यहीं से उत्तराखंड के कई गांधीवादी कार्यकर्ताओं का निर्माण हुआ। इनमें धूम सिंह नेगी, घनश्याम सैलानी, चंडी प्रसाद भट्ट, धर्मानंद नौटियाल, सुरेंद्र दत्त भट्ट, भवनी भाई, कुंवर प्रसून, विजय जड़धारी, प्रताप शिखर और पांडुरंग हेगड़े प्रमुख हैं।

इन्होंने बाद में बहुगुणा के साथ और स्वतंत्र रूप से भी कई आंदोलन चलाए। पांडुरंग हेगड़े जो सिल्यारा में एमएसडब्लू का फील्ड वर्क करने आए थे सुंदरलाल बहुगुणा के दर्शन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कर्नाटक में पेड़ों को बचाने का अप्पिको आंदोलन छेड़ दिया। शराबबंदी, चिपको और टिहरी बांध विरोधी आंदोलन के दौरान सुंदरलाल बहुगुणा ने लंबे उपवास भी किए। इनमें टिहरी बांध के खिलाफ 74 दिन का उपवास भी शामिल है। बहुगुणा दंपति ने सिल्यारा आश्रम को गांधीजी के ग्राम स्वराज की प्रयोगशाला बना डाला। तब लड़िकयों को पढ़ाने की परंपरा नहीं थी। उन्होंने आश्रम में बालिकाओं के लिए आवसीय स्कूल खोला। इसमें उन्हें पढ़ाई के अलावा सामान्य कामकाज व सिलाईए कताईए बुनाई भी सिखाई जाती थी। यही नहीं वे शाम को गांव में जाकर महिलाओं को भी उनके घरों में जाकर पढ़ाने लगे। महिलाओं के सहयोग से गांव में शराबबंदी भी की।

अपनी यात्राओं के दौरान सुंदर लाल बहुगुणा ने वन विनाश के परिणामों और वन संरक्षण के फायदों को बारीकी से समझा। उन्होने देखा कि पेड़ों में मिट्टी को बांधे रखने और जल संरक्षण की क्षमता है। अंग्रेजों के फैलाए चीड़ और इसी से जुड़ी वन विभाग की वनों की परिभाषा – जंगलों की देन लकड़ी लीसा और व्यापार भी उनके गले नहीं उतरी। उनका मानना था कि वनों का पहला उपयोग पास रह रहे लोगों के लिए हो। उससे उन्हें अपनी जरूरत की चीजें खाद्य पदार्थ, घास, लकड़ी और चारा घर के पास ही सुलभ हों। उन्होंने कहा कि वनों की असली देन तो मिट्टी,पानी और हवा है। उनकी इसी सोच से बाद में चिपको आंदोलन के नारे –

क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार,मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार का जन्म हुआ।

उन्होंने वन अधिकारों के लिए बड़कोट के तिलाड़ी में शहीद हुए ग्रामीणों के शहादत दिवस 30 मई को वन दिवस के रूप मे मनाने का 30 मई 1967 में निश्चय किया। इसमें अपने सर्वोदयी साथियों के अलावा सभी से शामिल होने की उन्होंने अपील की।

दरअसल 30 मई 1930 को बड़कोट में यमुना नदी के किनारे वन अधिकारों को लेकर बैठक कर रहे ग्रामीणों पर तत्कालीन राजा की फौज ने गोलियां चला दी थीं। जिसमें 17 लोगों की मौत हो गई थी, कई लोग जान बचाने को यमुना में कूद गए थे। जिनमें कई बह गए। 80 लोगों को जेल में ठूंस दिया गया था।

1968 में सुंदर लाल बहुगुणा ने इस दिवस को मनाने के लिए पुस्तिका निकाली जिसे नाम दिया गया पर्वतीय क्षेत्र का विकास और वन नीति। इसमें कहा गया था कि वनए कृषिए पशुपालन और कुटीर उद्योग से लोगों को वर्ष भर में कम से कम 300 दिन का रोजगार मिलना चाहिए। 1969 में तिलाड़ी में शहीद स्मारक की स्थापना के साथ ही सुंदर लाल बहुगुणा ने अपने सर्वोदयी साथियों के साथ वन संरक्षण की शपथ ली। इस बीच सुंदर लाल बहुगुणा 1969 से 1971 तक शराब बंदी के लिए गढ़वाल से लेकर कुमाऊं के बीच दौड़ भाग करते रहे।

1971 के सफल आंदोलन के बाद जब पहाड़ में सरकार ने शराबबंदी लागू कर दी तो बहुगुणा ने वन आंदोलन का बीड़ा उठाया। 11 दिसंबर 1972 को वन व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए 11 दिसंबर को पहला जुलूस बड़कोट के पास पुरोला कस्बे में निकला। इसमें बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने शिरकत की। अगले दिन उत्तरकाशी में विशाल जुलूस निकला। सुंदर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में निकले इस जुलूस में जनकवि घनश्याम सैलानी और चंडी प्रसाद भट्ट भी शामिल थे। 13 दिसंबर की सुबह सुंदर लाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट और धनश्याम सैलानी एक किराए की जीप लेकर गोपेश्वर के लिए निकले। रात में तीनों रुद्रप्रयाग खादी कमीशन के दफ्तर में रुके। यहां घनश्याम सैलानी ने एक गीत लिखा:
इसके बोल थे: खड़ा उठा भै बंधु सब कट्ठा होला
सरकारी नीति से जंगलू बचैला
..चिपका पेड़ों पर अब न कट्यण द्या
जंगलू की संपत्ति अब न लुट्यण द् या।

घनश्याम सैलानी का यही गीत वन आंदोलन का जागृति गीत बन गया। 15 दिसंबर 1972 को गोपेश्वर के विशाल जुलूस में सैलानी का यह गीत पहली बार गूंजा तो लोगों और फिर चिपको आंदोलन का प्रमुख गीत बन गया।
उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत ने अपने व प्रदेशवासियों की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि स्वर्गीय बहुगुणा का जीवन समाज के लिए समर्पित रहा, उनके इस त्याग और समर्पण को कोई भी, कभी भुला नहीं सकता। उन्होंनेे कहा कि स्व. बहुगुणा ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए कई आंदोलन किए। समाज के प्रति सदैव उनका त्याग और समर्पण का भाव रहा। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उन्होंने देश और दुनिया का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति स्वर्गीय बहुगुणा जी के ध्येय एवं विचारों को हम किस तरह आगे लेकर चलें इस ओर हमारा प्रयास निरन्तर जारी रहेगा।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर ने कहा कि हम उनको श्रद्धांजलि के साथ-साथ कार्यांजलि भी दें। जो उन्होंने कहा था उस पर अमल करें। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का सुरक्षित रहना देश के लिए बहुत जरूरी है। उन्होंने सीएम से अपील की कि बहुगुणा के सुझाए बिंदुओं पर ध्यान दें नही ंतो केदारनाथ जैसी आपदा के रूप में प्रकृति अपना कोप दिखाएगी। उन्होंने कहा कि आज के नेताओं की समाजसेवा राजनीति पर जाकर समाप्त हा जाती है लेकिन बहुगुणा ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पीक पर राजनीति छोड़कर समाजसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया।

राइट टू लाइवलीहुड की प्रतिनिधि काजा ओवगार्ड ने पुरस्कार लेने के लिए जिनेवा आए बहुगणा से मुलाकात की अपनी यादें साझा की और कहा कि जैसे बहुगुणा कहते थे उसीके अनुसार हमें अपनी आवश्यकताएं कम से कम करते हुए प्रकृति से कम से कम लेना चाहिए जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधन बचे रह सकें।

बहुगुणा पर इकालाॅजी इज दि परमानेंट इकोनाॅमी पुस्तक लिखने वाले टेक्सास विवि के जार्ज जेम्स ने कहा कि बहुगुणा के इकोलाॅजी को आध्यत्म से से जोड़ने के दर्शन से मुझे प्रेरणा मिलती थी और मैं हर साल उनसे मिलने आता था।

मेलबोर्न विवि में प्राफेसर जाॅन स्टोन और उनकी पत्नी लिंडा पारलेन ने स्वर्गीय बहुगणा की स्मृति में पौधे लगाए। उन्होंने बतया कि बहुगुणा से प्रेरणा लेकर उन्होंने ताजमीनिया में नदी को बचाने के लिए आंदोलन किया। इसमें 500 लोंगों को जेल भी जाना पड़ा।

दलाई लामा के प्रतिनिधि आचार्य श्री यशी ने स्वर्गीय बहुगुणा की सादगी और प्रकृति प्रेम का जिक्र्र किया। उन्होंने कहा कि बहुगुणा जो कहते थे करते थे। आईसीएफआरई के पूर्व डीजी वीके बहुगुणा ने स्वर्गीय बहुगुणा को भरत रत्न देने की मांग की जिसका लगभग सभी वक्ताओं ने समर्थन किया।

वेबनार के माध्यम से महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल, कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल, नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के प्रतिनिधि के तौर पर उनके पु़त्र सुमित हृदयेश, पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी, बिहार से पूर्व विधायक विदयाभूषण सिंह, भारत भूषण, प्रेस क्लब आॅफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा, सुनील पांडे, राधा बहन, अप्पिको आंदोलन के प्रणेता पांडुरंग हेगड़े, बहुगुणा के सहयोगी धूम सिंह नेगी, कुलभूषण उपमन्यु, पिंगलवाड़ा सोसयटी की अध्यक्ष डा इंद्रजीत कौर, प्रोफेसर अजय गैरोला, एसपी सिंह, आनंद कुमार, सुवा लाल, चंद्र शेखर, आरके श्रीवास्तव, आरके शर्मा, जयंत वंदोपाद्याय, चंद्र सिंह, इंद्रमणि सेमवाल, पीएस नेगी, राज्य आंदोलनकारी वीरेंद्र पोखरियाल और नंदिता पोखरियाल, राजेंद्र असवाल, केपी मैठाणी समेत कई ने स्वर्गीय बहुगुणा को श्रद्धांजलि दी।

सौम्या (देहरादून) हरीतिमा (मेलबोर्न)

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