हिमशिखर धर्म डेस्क
उस रोज (16 जून 2013) खबर आयी थी…केदारनाथ में जलप्रलय की। दिमाग में प्रलय से हुई तबाही के चित्र तैर रहे थे। सहसा 1998 का वो मई का महीना याद आ गया। जब मैं अपने दोस्तों के साथ केदारनाथ गया था। गगनचुंभी हिमशिखरों के मध्य फैली केदारघाटी का एक-एक दृश्य मेरी आंखों में उतर आया था। फिर अचानक अनूठे सौंदर्य में लिपटे ये दृश्य खौफनाक होते चले गए।
शिवनगरी का ऐसा मंजर…। हर तरफ एक ही चर्चा थी कि शिव शंकर ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया है। ग्लोबल वार्मिंग से मौसम में आए बदलाव में जलप्रलय की बात भी चल रही थी। इन सारी बहसों, चर्चाओं और तर्कों को मन में बसाए मैं उस रोज उदास मन घर लौटा। टीवी पर खबरें चल रही थीं कि शिवजी का यह तांडव धरती पर बढ़ते पाप का परिणाम है। ये सारी बातें मेरे लिए खबरों को जायकेदार बनाने में इस्तेमाल मसाले जैसी थी। मगर न जाने क्यों मैं इन्हें खारिज नहीं कर पा रहा था। मस्तिष्क में भीषण जलप्रलय मची थी।
बिस्तर पर लेटते ही आंख लगी और खुद अपने कार्यालय में बाॅस के सामने पाया। संपादक कह रहे थे कि मुझे केदारनाथ जाना है। केदारघाटी में मची जलप्रलय को कैलाशपति ने स्वीकार कर लिया है। मुझे शिवजी का इंटरव्यू चाहिए…। मुझे मालूम है कि ये काम तुम कर सकते हो…। संपादक ने मुझ पर विश्वास जताया। न जानें क्यों मैं बाॅस के इस निर्देश पर हैरान नहीं हुआ और तुरंत मान गया।
अचानक दृश्य बदला। मैं गौरीकुंड में था। गौरीकुंड के आस-पास बने भवनों में बड़ी-बड़ी चट्टानें और मलबा भरा था। छोटी-छोटी दुकानों में गाद ही गाद थी। जहां-तहां घोड़े खच्चरों के शव बिखरे पड़े थे जो सड़ांध मार रहे थे। मैंने गौरीकुंड से रामबाड़ा की राह पकड़ी तो वहां खड़े सेना के जवानों ने रोक दिया। …उधर कोई नहीं जा सकता। रास्ते टूट गए हैं। रामबाड़ा पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। कई सौ मीटर तक रास्ता नहीं है। चाहे जो भी हो, मुझे जाना है। …मैंने टाईम ले रखा है। …शिवजी से, उनका इंटरव्यू करना है मुझे…आगे बढ़ते हुए मैंने उनसे कहा, पागल हो गए हो क्या…चलो हटो यहां से लौटो…सभी जवानों ने मुझे पीछे खदेड़ दिया…। लेकिन मैं जिद पर अड़ा था…मुझे जाना है बस…अरे इंटरव्यू नहीं किया तो बाॅस को क्या जवाब दूंगा…वो तो मुझे नौकरी से निकाल देंगे। प्लीज जाने दो न…मैंने जवानों से अनुरोध किया…।
दूर खड़ा एक सैन्य अधिकारी ये सारा तमाशा देख रहा था। पास आकर उसने जवानों को हुक्म किया…जाने दो इसे। हां सुनो दो जवान इसके साथ जाओ…। ऊपर जाने की इच्छा है इसकी। जानें…दो…जहां हजारों चले गए…इसे भी जाने दो। मगर सर…ये पागलों जैसी बातें कर रहा है…कह रहा है शिवजी का इंटरव्यू करना है…शिवजी कोई पालिटिशियन हैं जो इसका इंतजार कर रहे हैं। मैंने कहा न जाने दो इसे…दो जवान साथ जाओ इसके सैन्य अफसर ने जवानों को निर्देश दिए…।
कुछ ही पलों में हम केदारघाटी में थे…। चारों तरफ लाशें बिखरीं थीं…। कई लोग चट्टानों के नीचे दबे थे। मलबों में जहां-तहां हाथ-पांव बाहर झांक रहे थे। जीवन नाम के चिन्ह वहां दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे थे। आसमान में दूर तक काले बादलों के बीच प्रकाश की किरणें मानों बाहर आने के लिए संघर्ष कर रही थी। जैसे-जैसे मंदिर की ओर बढ़े उसकी पृष्ठभूमि में शिव का भव्य स्वरूप दिखाई दिया। …और आगे बढ़े तो ये आकृति स्पष्ट होती चली गई। अरे…देखो शिव भगवान…एक जवान बोला…। हां यार साक्षात शिवजी…हम जो धन्य हो गए…। वे दोनों वही रुक गए। मैं बढ़ता चला गया…मंदिर परिसर में बिखरी लाशों को लांघता मैं ज्योंही शिव के करीब पहुंचा तो उनके तमतमाए रूप को देखकर डर गया।
मुझे कोई और काम नहीं है…इतना इंतजार कराया तुमने…मूर्ख…इतना विलंब क्यों किया…। शिवजी ने मुझ पर प्रश्नों की बौछार कर डाली। मैंने उन्हें बताया कि कोई यकी नही नहीं कर पा रहा था कि आपने मुझे इंटरव्यू का समय दिया है। सेना के जवानों ने मुझे रोक दिया…। बड़ी मुश्किल से पहुंचा हूं कैलाशपति आपके धाम।
हा…हा…हा…हा… के शिवजी के अट्टाहास से समूची केदारघाटी गूंज उठी…। ये मानव बड़ा ही विचित्र है…। तभी विश्वास करता है जब उसे भोगना पड़ता है। अब भोग रहा है…तो मानेगा…नहीं मानेगा…तो फिर भोगेगा…। क्यों भोगेगा भगवन्। कुछ स्पष्ट करें…मैंने प्रश्न किया अरे छोड़ो…इंटरव्यू लो और निकलो यहां…से। लाशों पर विराजमान भोले शंकर ने मुझे हुक्म दिया। जी…जी…आप तो अंतर्यामी हैं प्रभु…। आप तो जानते ही हैं मेरा पहला प्रश्न क्या होगा…। अपने भक्तों को जलप्रयल में डूबो दिया प्रभु…। वे तो आपसे दीर्घायु और समृद्धि का आशीर्वाद लेने आए थे…और उनका क्या जो इन कठिन हालातों में आपकी सता को बनाए रखने के लिए दशकों से सेवा कर रहे हैं। …आपने तो उन्हें भी नहीं बख्शा…ये विनाशलीला क्यों प्रभु…क्यों…?
जहां मैं विराजता हूं…ये क्या है…। ये केदारधाम है…मेरे पास लोग मोक्ष के लिए आते हैं…मैंने उन्हें मोक्ष दे दिया। लेकिन प्रभु उनमें छोटे-छोटे बच्चे भी थे…अभी तो उन्होंने दुनिया भी नहीं देखी थी…आप तो इतने निष्ठुर नहीं हो सकते…आपे तो भोले बाबा हैं।
ये कोई टूरिस्ट डेस्टिनेशन नहीं है कि लोग मेरे धाम इसलिए आएं कि उन्हें छुट्टियां सेलिब्रेट करनी हैं…ये कोई हनीमून मनाने की भी जगह नहीं है…अब तो लोग मांस-मदिरा से भी परहेज नहीं कर रहे हैं…। मेरे धाम में सात्विकता और पवित्रता खत्म कर दी गई। मैं कब तक सहता रहूंगा…इन दुष्टों का ये अप्राकृतिक आचरण। मेरा आंगन कभी बुग्यालों से गुलजार था। पुष्टवाटिकाएं थी। झरने थे…। निश्चल मंदाकिनी का संगीत घाटी में गूंजता तो सारे देवता आनंद से झूम उठते थे…। लेकिन आज कहां हैं वो बुग्याल…वो पुष्पवाटिकाएं…झरनें…। सब तुच्छ मानव की हवस का शिकार हो गए…। किन भक्तों की बात कर रहे हो तुम…गंगा मुझसे न जाने कितनी बात शिकायत कर चुकी है कि उसे बांधा जा रहा है…।
मैं हर बार उसे समझाता हूं कि इसके लिए मेरी जटाएं जिम्मेदार नहीं अपितु ये मनुष्य की अतृप्त इच्छाओं का परिणाम है…। मंदाकिनी, भागीरथी…सब नाराज हैं खुद को बांधे जाने से…। यहीन मानों मेरे लिए सब भक्त बराबर हैं। लेकिन मनुष्य ने फर्क किया। वो कौन होता है ये तय करने वाला कि मैं सबसे पहले वीवीआईपी, वीआईपी को ही दर्शन दूंगा… ये मेरा विशेषाधिकार है…वो मेरी सता में अतिक्रमण करे तो ठीक और मैं करूं तो अनिष्ट…प्रलय। देखो, मैंने कल्याण करने में भी कोई फर्क नहीं किया…। अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा सब समा गए मेरे आगोश में…। बोलो…किया मैंने कोई फर्क…।
किंतु प्रभु सब भयभीत हैं…अब क्या होगा…। कौन आएगा आपके दर्शनार्थ। आपने तो अपने ही धाम को…। चुप कर दुष्ट…भोला मैं नहीं तू है…तू अब तक न समझा इस मानव को…। ये बड़ा स्वार्थी है रे…बड़ा उद्दण्ड, दुस्साहसी…और लोभी…। चल अब जा…मुझे ध्यान लगाना है। इंटरव्यू खत्म हो चुका था।
भोले बाबा का इंटरव्यू करके मैं बहुत ही उत्साहित था। तुरंत बाॅस को बताया…भाई साहब…इंटरव्यू हो गया…। क्या कहा…हो गया…कमाल कर दिया तुमने…क्या खबर बनी…बास ने सवाल दागा…। खबर जबर्दस्त है…शिवजी के मुताबिक केदारघाटी में जो कुछ हुआ ठीक हुआ…। क्या बकवास कर रहे हो, अखबार जलवाओगे क्या…बाॅस के इस डपट से मेरी आंखें खुल गई…मैं बिस्तर पर लेटा हुआ था। …आंखों में उतर आया ये ख्वाब और ख्वाओं की तरह न जाने क्यों यह आज तक स्मृतियों से ओझल नहीं हो पा रहा है।
केदारनाथ में आई भीषण आपदा में मारे गए सभी लोगों के प्रति हिमशिखर खबर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है एवं दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए बाबा केदार से प्रार्थना करता है।
जय भोलेनाथ, जय केदारनाथ बाबा जी आप तो त्रिकाल दर्शी है , सब प्राणि आपकी दया पर निर्भर है। अब आपके दर्शन कब होगे प्रभु , रास्ता दिखा देना प्रभु । जय बाबा केदार:- केपी सकलानी अध्यक्ष वरिष्ठ नागरिक कल्याण संस्था उत्तराखंड 👏