श्रीमहंत स्वामी महेश्वरदास
मां गंगा भारतभूमि में परमात्मा, देवात्मा हिमालय की ओर से दिया गया विशिष्ट दिव्य अनुदान है। यह मात्र जल की धारा नहीं अपितु हजारों-लाखों के मनों व हृदयों में बसी एक भाव-धारा, स्नेह सलिला मां है। गंगोत्री से गंगा सागर के मध्य बहने वाली यह जलधारा करोड़ों जनों की भौतिक, आध्यात्मिक आवश्यकताओं एवं पिपासा को शांत करती है।
मां गंगा ने हजारों वर्षों से भारत भूमि को सिंचित किया है और यहां के लोगों के समस्त पापों-तापों का शमन किया है। ये ऐसी दिव्य धारा है, जिसको हिन्दुओं ही नहीं वरन् अकबर, औरंगजेब जैसे मुस्लिम शासकों ने भी सराहा। आज भी गंगा के किनारे बसे समस्त तीर्थों में सैकड़ों-हजारों विदेशी श्रद्धालु प्रायः आध्यात्मिक शांति के लिए आते हैं। वाराणसी, हरिद्वार, गंगोत्री, ऋषिकेश इसके जीवंत उदाहरण हैं।
गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा सगर के भस्मीभूत साठ हजार पुत्रों को स्वर्ग प्राप्त हो गया। ‘पद्म-पुराण’ के अनुसार गंगा नाम स्मरण से पातक, कीर्तन से अतिपाप व दर्शन से महापातक (भारी पाप) भी नष्ट हो जाते हैं। गंगा को मां समान बताते हुए पद्म पुराण में लिखा है कि –
त्यजन्ति पितरं पुत्राः प्रियं पत्न्यः सुहृद्गाः।
अन्ये च वान्धवा सर्वे गंगा तान्न परित्यजेत।।
अर्थात् पिता पुत्र को, पत्नी प्रियतम को, सम्बन्धी अपने निकट सम्बन्धियों, बंधु बान्धव अपने प्रिय बन्धुओं को छोड़ देते हैं। मगर मां गंगा उनका परित्याग नहीं करती, उन्हें सदैव आश्रय देती है। विष्णु पुराण, शिव पुराण, मत्स्य पुराण, भागवत, स्कन्द पुराण, देवी भागवत में गंगा की महिमा विस्तार से वर्णित है। स्कन्द पुराण के केदारखंड में गंगा के एक हजार नामों का उल्लेख हुआ है।
जिस तरह ताराओं में चन्द्रमा, वर्णों में ब्राह्मण, समुद्रों में क्षीर सागर श्रेष्ठ है, उसी तरह सभी तीर्थों में ‘गंगा’ श्रेष्ठ है। शतपथ ब्राह्मण, कात्यायन आदि प्राचीन ग्रंथों में ‘गंगा’ का उल्लेख है। हिन्दू धर्म में गंगा मोक्षदायिनी मानी गई है। आदि अनादि ‘गंगा’ के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती है। गंगा भारतवासियों की आत्मा है, प्राचीनकाल से यही उद्घोष ऋषि, मुनि, तपस्वी करते आ रहे हैं। भारतवासी पतितपावनी ‘गंगा’ के देश में जन्म लेकर स्वयं को धन्य मानते हैं।
वहीं आज के समय गंगा औद्योगिकरण, शहरीकरण के कारण निरंतर प्रदूषित होता जा रही है। यह हमारी गंगा मां के ऊपर मंडराता बड़ा संकट है। समाधान के लिए हमें शहरीकरण और औद्योगीकरण की अंधी दौड़ से निकल कर भारत की ग्राम्य संस्कृति की ओर वापस लौटना पड़ेगा। हमारी पुरानी जीवन पद्धति वाली गौ, गंगा एवं गांव की संस्कृति ने हमारे अस्तित्व को अब तक बचाकर रखा हुआ है।
आज आवश्यकता है इस संस्कृति को पुनर्जीवित करने की। जल, जंगल और जमीन से हमारी धरा शुद्ध, सिंचित और पवित्र रहेगी। जरूरत है, पुनः इस संस्कृति की ओर वापस जाने की। इससे ही हमारी मां गंगा का निर्मलीकरण सम्भव हो सकेगा।