हिमशिखर धर्म डेस्क
काका हरिओम्
हमारे ऋषियों की मान्यता रही है कि इस संसार में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो निरर्थक हो, जिसका उपयोग न हो सकता हो। इसलिए तमोगुण का भी अपना उपयोग है। इसीलिए सत्वगुण और रजोगुण की रक्षा की प्रार्थना करते समय भारतीय मनीषियों ने तमोगुण की उपेक्षा नहीं की है। विदित हो कि रजोगुण की भूमिका जहां एक्सलेटर के रूप में है, वहीं सत्व गुणों में संतुलन का काम करता है। तमोगुण को ब्रेक की तरह मानना चाहिए।
निद्रा को तमोगुण से जोड़कर देखा जाता है। हम सभी इस बात को व्यावहारिक रूप से जानते हैं कि इसके बिना सक्रियता को बरकरार नहीं रखा जा सकता। यदि नींद न आए, तो शरीर ऊर्जाहीन और शिथिल हो जाता है। शारीरिक और मानसिक विकास के लिए गहरी नींद का होना आवश्यक है। इसीलिए शिशु को ज्यादा नींद आती है। नींद पर मनोवैज्ञानिकों ने कई प्रयोग किए हैं। सोते समय आपकी मुद्रा क्या होती है, उससे व्यक्ति की आन्तरिक स्थिति का पता चलता है। जब आप ज्यादा थके होते हैं, तो आपकी मुद्रा उससे बिल्कुल अलग होती है, जिस समय आप किसी परेशानी में होते हैं। घोड़े बेचकर सोना और करवटें बदलना नींद से संबंधित कहावतें हैं।
अतिनिद्रा और अनिद्रा दोनों को ही रोग माना जाता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अनिद्रा के पीछे एक महत्त्वपूर्ण कारण यह भी है कि जब कोई इस बात को लेकर चिंतित हो जाए कि उसे नींद नहीं आती है। शायद ही ऐसा कोई होगा, जो न सोता हो। हम इसे एक निश्चित समय की सीमा में बांधकर देखते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि गहरी नींद आ जाए, तो हमारी थकान कम समय में ही खत्म हो जाती है-हम तरोताजा हो जाते हैं।
नींद को कुछ लोगों ने एक अलग दृष्टिकोण से ही देखा है। कहते हैं कि गोस्वामी तीर्थराम से किसी ने पूछा कि, ‘‘आप 24 घंटे में से कितने घंटे पढ़ते हैं?’’ तो उन्होंने जवाब दिया, ‘‘24 घंटे’’। सुनने में यह जरूर अटपटा सा लगता है, लेकिन इसका रहस्य जान लिया जाए, तो इसका उपयोग अच्छे खासे टूल के रूप में किया जा सकता है।
यह तो हम सभी जानते हैं कि हम जिन कामनाओं का दमन करते हैं, उनकी पूर्ति नींद में अक्सर कर लेते हैं। यह संकेत है कि सोते समय चेतन मन भले ही बेसुध होता है, लेकिन अर्धचेतन मन पूरी तरह से सक्रिय होता है। बल्कि जागते समय से भी ज्यादा। इसीलिए कहा जाता है कि सोते समय जो आपका आखिरी विचार रहा हो, वह यदि जागते समय सबसे पहले आए, तो समझना चाहिए कि सारी रात वह विचार आपके मनोमस्तिष्क में सक्रिय रहा है। उसका प्रभाव आपके शरीर पर बहुत गहरा होता है। इसीलिए मनोवैज्ञानिक सलाह देते हैं कि जिसे याद करने में आपको कठिनाई हो रही है, उसे दोहराते हुए रात्रि में सो जाएं। वह आपके अचेतन मन में बैठ जाएगा। यह प्रक्रिया बिल्कुल वैसी है, जैसे शांत जल के नीचे मिट्टी बैठ जाती है।
रामायण में विभीषण का उदाहरण इस बात की ही पुष्टि करता है। हनुमानजी जब सीताजी का पता लगाने लंका गए, तो वैष्णव चिन्हों को एक महल के बाहर देखकर उनमें उम्मीद बंधी। प्रतीक्षा करने लगे। विभीषण जागे, तो उनके मुख से राम का नाम निकला-राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हनुमानजी को विश्वास हो गया कि उनका मिलन किसी राम भक्त से होने वाला है। वह मिले विभीषण से।
मुझे स्मरण है कि सांख्यिकी के फार्मूलों को हमने इसी प्रक्रिया से याद किया था। उन फार्मूलों को लिखकर हमने वहां दीवार पर चिपका दिया था, जिस ओर सोते समय हमारा मुख होता था। उन्हें दोहराते हुए हम सो जाते थे। और आश्चर्य है कि 20 दिनों में वह सभी फार्मूले हमें याद हो गए।
यह जो आजकल हम रात के समय नकारात्मक सोच के सीरियल्स को देखकर सोते हैं, इससे होने वाली हानि का हमें सामान्य रूप से पता नहीं चलता है।
ध्यान रहे, जीवन को चेतन मन नियंत्रित नहीं करता है, अचेतन मन की ऊर्जा से संचालित होता है जाग्रत अवस्था में किया गया हमारा व्यवहार।
नींद का सदुपयोग करना सीखें, सत्साहित्य पढ़ें, ईश्वर का ध्यान करें।