हिमशिखर धर्म डेस्क
दार्शनिक सुकरात ने कहा है कि जीवन में परीक्षाएं बहुत जरूरी हैं। जीवन एक निरंतर चलने वाली परीक्षा है। लेकिन कुछ लोगों के लिए यह शब्द इतना भयंकर होता है कि इसे सुनते ही उनके पसीने छूटने लगते हैं। वास्तविकता ऐसी नहीं है। परीक्षा जीवन का अनिवार्य अंग है। जिंदगी का हर लम्हा किसी न किसी तरह की परीक्षा है। इसमें जो जितना तपा, वह उतना खरा कुंदन बना।
प्रत्येक व्यक्ति हर परीक्षा में सफल होना चाहता है। इसलिए परीक्षा चाहे जैसी भी हो, उसके लिए उचित तैयारी करनी चाहिए। बिना तैयारी के परीक्षा देना ऐसा ही है, जैसे बिना तैरना सीखे गहरे पानी में उतरना। बिना सीखे कोई गहरे पानी में तो दूर, उथले पानी में भी नहीं उतरता। फिर स्कूल, काॅलेज अथवा किसी अन्य प्रतियोगी परीक्षा के लिए अपेक्षित तैयारी न करने का क्या औचित्य हो सकता है?
तैराकी पानी में ही सीखी जा सकती है, पानी के बिना नहीं। लेकिन इसका प्रारंभ घनघोर गर्जन करते समुद्र अथवा विपुल जलराशि युक्त महानद में संभव नहीं। इसका प्रारंभ तो शांत उथले जल में ही संभव है। जीवन की परीक्षाओं के लिए भी ऐसा ही परिवेश चाहिए। जैसे छात्र जीवन की परीक्षाएं हैं। उनका प्रारंभ होता है क, ख, ग, घ अथवा ए, बी, सी, डी से।
यदि विद्यार्थी पहले दिन से ही क्लास में नियमित रूप से जाता है, वहां टीचर की बातें ध्यान से सुनता है, हर रोज अपना होम वर्क करता है और आज का काम कल पर नहीं टालता, तो वह अपनी परीक्षा में आसानी से सफलता प्राप्त कर सकता है। इसी तरह, मामला चाहे स्वास्थ्य का हो, शादी-विवाह का हो अथवा बच्चों की परवरिश का-सहज भाव से की गई तैयारी जीवन के हर क्षेत्र में काम आती है।
इसके उलट, जो छात्र पूरे साल नियमित रूप से अपना काम नहीं करते, वे परीक्षा के दौरान हवा के झोंको के समान आशा-निराशा कें भवर में उतरते-डूबते रहते हैं। जब कुछ आएगा ही नहीं, तो गलत तरीकों का सहारा लेंगे। किसी से कुछ पूछ कर अथवा किसी की नकल करके पास होने की कोशिश करेंगे। भले ही नकल करने वाले ऐसे छात्र परीक्षा में किसी तरह पास हो जाएं, लेकिन वास्तविक जीवन में उनसे बड़ा असफल अथवा फेल व्यक्ति नहीं होता। ऐसे छात्र न केवल बाकी विद्यार्थियों व अध्यापकों की नजरों में गिर जाते हैं, बल्कि अपनी नजरों में भी गिर जाते हैं। उनमें कभी भी आत्म सम्मान व आत्म विश्वास पैदा नहीं होता। जिंदगी के इम्तिहान में भी कुछ ऐसा ही होता है।
जिस प्रकार परिश्रमी विद्यार्थी परीक्षा भवन से वियजी होकर लौटते हैं और अपने आत्म सम्मान में वृद्धि करते हैं, उसी प्रकार जो व्यक्ति समय-प्रबंधन द्वारा जीवन में आने वाली विभिन्न परीक्षाओं को पहले से ही तैयारी रखते हैं, वे सफलता पाते हैं। इससे उनका आत्म विश्वास बढ़ता है। उनके भीतर आशावादी दृष्टि पैदा होती है और वे हौसले से आगे बढ़ते हैं।
जिंदगी की वास्तविक परीक्षाएं विषम परिस्थितियों में ही होती है। स्कूली परीक्षा में तो न परिस्थितियां विषम होती हैं और न ही कोई आपात जैसी स्थिति होती है। एक छात्र को साल भर का समय मिलता है, परीक्षारूपी युद्ध क्षेत्र में कूदने की तैयारी के लिए। इसके लिए उसे हर तरफ से मदद मिलती है। इम्तिहान अचानक नहीं शुरू होता। उसके नतीजों पर आगे का भविष्य किस तरह निर्भर करता है, यह भी वह जानता है। फिर तो असफल होने की कोई वजह नहीं है।
और अगर इन तमाम बातों की उपेक्षा करते हैं तो शायद आगे की जिन्दगी को लेकर भी आपका नजरिया कुछ वैसा ही होगा। ऐसे में परीक्षाएं आपको लहरों की तरह उछलती और पटकती रहेंगी।