हम अपने घर को लेकर चिंतित रहते हैं। हम इसे व्यवस्थित रखते हैं, ताकि इसमें रह सकें और खुश रहें। हम जानते हैं कि अपने घर में सुखी रहने के लिए हमें उसके रखरखाव पर ध्यान देना होगा। इसलिए यहां करुणा नहीं चिंता का भाव काम करता है। इसी तरह से पृथ्वी भी हमारा घर है और हमें इसे व्यवस्थित रखना चाहिए।
हमारे गौरवशाली सनातन धर्म में हम सभी का अपनी मिट्टी में लालन-पालन करने वाली पृथ्वी को माँ का दर्जा दिया गया है। अगर हम इसे अपनी ‘धरती मां’ मानते हैं, तो हमें स्वाभाविक रूप से अपने पर्यावरण के बारे में सोचना ही होगा। आज हम इस बात को समझते हैं कि मानवता का भविष्य बहुत सीमा तक पृथ्वी पर निर्भर करता है और पृथ्वी का भविष्य बहुत कुछ मानवता पर निर्भर करता है।
अब तक हमने देखा कि धरती मां ने हमारी अव्यवस्थित आदतों को किसी प्रकार सहन किया है। पर अब मनुष्य द्वारा इसका उपयोग, जनसंख्या और प्रौद्योगिकी उस स्तर तक पहुंच चुकी है, जहां धरती मां हमारे अस्तित्व को मौन भाव से और स्वीकार नहीं करती।
पर्यावरण के लिए सर्वाधिक घातक पोलीथिन को आज हमने अपने लिए अपरिहार्य बना लिया है। इस पोलीथिन के कारण नदी नाले अवरुद्ध हो रहे हैं और यही, पशुधन के लिए प्राणघातक सिद्ध हो रही है। जिस गौमाता को बचाने के लिए हम पुकार कर रहे हैं, उसका जीवन भी इसी पोलिथीन के कारण संकटग्रस्त हो रहा है। धरती की उर्वराशक्ति को भी यही नष्ट कर रही है।
कई प्रकार से वह अब हमें बता रही है, मेरे बच्चों तुम बुरा बर्ताव कर रहे हो। वह हमें चेतावनी दे रही है कि हमारे कार्यों की सीमाएं हैं। इस चेतावनी को समझें और पृथ्वी को अपने कृत्यों से विषैला न बनाएं।
पर्यावरण संरक्षण करना सबका दायित्व है। आज हम सभी को पृथ्वी की रक्षा के लिए पर्यावरण सुरक्षा की पहल करने की आवश्यकता है। क्योंकि भारत के महानगरों में जिस तरह से बहुत ही तेजी से स्वच्छ जल व स्वच्छ वायु का दिन-प्रतिदिन अभाव होता जा रहा है, वह स्थिति हमारे लिए व हमारी आने वाली पीढियों के लिए ठीक नहीं है।