हिमशिखर खबर ब्यूरो
एक दिन चाणक्य का एक परिचित उनके पास आया और बड़े उत्साह के साथ कहने लगा, ‘आप जानते हैं मैंने अभी-अभी आपके मित्र के बारे में क्या सुना है?’ चाणक्य अपनी तर्कशक्ति, ज्ञान और व्यवहार-कुशलता के लिए विख्यात थे। उन्होंने अपने परिचित से कहा, ‘आपकी बात मैं सुनूं इससे पहले कुछ कहना चाहूंगा कि आप त्रिगुण परीक्षण से गुजरें।’
उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘यह त्रिगुण परीक्षण क्या है?’’
चाणक्य ने समझाया, ‘आप मुझे मेरे मित्र के बारे में बताएं, इससे पहले अच्छा होगा कि, जो कहे उसको थोड़ा परख लें, जान लेें। इसलिए मैं इस प्रक्रिया को त्रिगुण परीक्षण कहता हूं। इसकी पहली कसौटी सत्य है। इस कसौटी के अनुसार जानना जरूरी है कि जो आप कहने वाले हैं, वह सत्य है और आप उसके बारे में अच्छी तरह से जानते हैं।
‘नहीं, वह आदमी बोला, ‘वास्तव में मैंने इसको कहीं सुना था। खुद देखा या अनुभव नहीं किया था।’ ठीक है, चाणक्य ने कहा, ‘आपको पता नहीं यह बात सत्य है या असत्य है। दूसरी कसौटी है अच्छाई। क्या आप मुझे मेरे मित्र की कोई अच्छाई बताने वाले हैं?’
न्हीं, उस व्यक्ति ने कहा। ‘इस पर चाणक्य बोले, जो आप कहने वाले हैं न तो सत्य है और न ही अच्छा। चलिए तीसरा परीक्षण कर ही डालते हैं।’
तीसरी कसौटी है उपयोगिता। जो आप कहने वाले हैं क्या वह मेरे लिए उपयोगी है। ‘नहीं’ ऐसा तो नहीं है। सुनकर चाणक्य ने आखिरी बात कह दी। ‘‘आप जो मुझे बताने वाले हैं, वह न सत्य है, न अच्छा न ही उपयोगी है, फिर आप मुझे बताना क्यों चाहते हैं?’’
तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य चाणक्य की गिनती श्रेष्ठ विद्वानों में की जाती है। चाणक्य को कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र की रचना भी की थी। चाणक्य योग्य राजनीतिज्ञ के साथ-साथ योग्य शिक्षक और समाजशास्त्री भी थे। समाज और मनुष्य को प्रभावित करने वाले सभी तत्वों के बारे में आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में गंभीरता से चर्चा की है।