उनका मानना था कि पेड़ पौधे भी इनसान की भावनाओं को महसूस करते हैं। वे पेड़-पौधों को गीत संगीत सुनाने की बात करते और खुद भी पौध रोपण के समय वृक्ष मानव रिचर्ड सेंट बेकर की वृक्षों के लिए गाई प्रार्थना करते थे। आप लोग भी पौध रोपण के समय यह प्रार्थना कर सकते हैं।
स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम कर प्रकृति से कम से कम लेने और उसका ऋण चुकाने की बात करते थे। जो कहते थे उसको अपने जीवन में भी उतारते थे। घटते भूजल के प्रति चेताते हुए उन्होंने पांच दशक से भी पहले चावल खाना इसलिए छोड़ दिया था कि धान का पौधा बहुत ज्यादा पानी लेता है। इसी तरह सेब खाना इसलिए छोड़ दिया था कि इसकी पैकिंग के लिए बड़ी संख्या में पेड़ कटते हैं। कहते थे कि पानी की अपनी जरूरतों को यदि हमने कम नहीं किया और जल संरक्षण की क्षमता वाले पौधों का रोपण और वन संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो पानी के लिए तीसरे विश्वयुद्ध की नौबत आ सकती है।
घटती कृषि भूमि और बढ़ती आबादी को देखते हुए उन्होंने वृक्ष खेती और फाइव एफ ट्री और वह भी चौड़ी पत्ती वाले फूड (भोजन), फाडर (चारा), फ्यूल (जलाउ लकड़ी) और फर्टीलाइजर (खाद) पौधे रोपने की सलाह दी। बड़े बांधों को स्थाई समस्या का अस्थाई समाधान करार देते हुए वे कहते थे कि हमें नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र को सघन वन से आच्छादित करना होगा। इससे जहां देश को स्थाई रूप से पानी मिल सकेगा वहीं नदियों का बहाव भी नियंत्रित होगा। इसके लिए उनका नारा था
“धार ऐंच पाणी, ढाल पर डाला
बिजली बणावा खाला–खाला।“
यानी रन आफ द रिवर स्कीम से बिजली पैदा कर पहाड़ की चोटी पर पानी पहुंचा कर तीखे पहाड़ी ढालों पर सघन वनीकरण किया जाय।