हिमशिखर धर्म डेस्क
कहते हैं कि जैसी संगत वैसी रंगत। जिस प्रकार टोकरी में रखे हुए सेब में अगर एक सेब खराब हो जाता है, तो वह सभी सेबों को भी खराब कर देता है। यदि आप अच्छे हैं, लेकिन यदि आपकी संगत बुरी है, तो आप बर्बाद हो जाएंगे। लेकिन आप बुरे हैं और आपकी संगत अच्छे लोगों से है तो आप आबाद हो जाएंगे। जीवन में संग अर्थात् साथ का बहुत महत्व है। हमारी संगत का हमारे विचारों से एक सीधा जुड़ाव होता है।
जिस प्रकार महाभारत में एक ओर कौरवों के पास थी शकुनि मामा की कुसंगति, जिससे सामने वाले की बुद्धि ही भ्रष्ट हो जाए, तो वहीं दूसरी ओर पांडवों के पास थी श्रीकृष्ण जैसे कुशल रणनीतिज्ञ की सुसंगति। इसी कारण पांडवों ने हमेशा धर्म के मार्ग को ही अपनी मंजिल समझा। इसके विपरीत कौरव अपने मामा की नीतियों में ही भ्रमित रहे।
कौरवों की सेना पांडवों की सेना से कहीं ज्यादा शक्तिशाली थी। एक से एक योद्धा और ज्ञानीजन कौरवों का साथ दे रहे थे। पांडवों की सेना में गिने-चुने वीर योद्धा ही थे। जब श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि तुम मुझे या मेरी नारायणी सेना में से किसी एक को चुन लो तो दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को छोड़कर उनकी सेना को चुना। अतः पांडवों का साथ देने के लिए श्रीकृष्ण अकेले रह गए।
कहते हैं कि विजय उसकी नहीं होती जहां लोग ज्यादा हैं, ज्यादा धनवान हैं या बड़े पदाधिकारी हैं। विजय हमेशा उसकी होती हैं, जहां ईश्वर हैं और ईश्वर हमेशा वहीं रहते हैं, जहां सत्य है इसलिए सत्य का साथ कभी न छोड़ें। आप सत्य की राह पर हैं और कष्टों का सामना कर रहे हैं लेकिन आपका कोई परिचित अनीति, अधर्म और खोटे कर्म करने के बावजूद संपन्न हैं, सुविधाओं से मालामाल है तो उसे देखकर अपना मार्ग न छोड़ें। आपकी आंखें सिर्फ वर्तमान को देख सकती हैं भविष्य को नहीं।
महाभारत में दुर्योधन उतना बुरा नहीं था जितना कि उसको बुरे मार्ग पर ले जाने के लिए मामा शकुनि दोषी थे। दुर्योधन ने मामा शकुनि की ज्यादा सुनी। जबकि पांचों पांडव भगवान श्रीकृष्ण की सलाह और आदेश को आंख मिंदकर मान लेते थे। पांडवों ने हमेशा श्रीकृष्ण की बातों को ध्यान से सुना और उस पर अमल भी किया लेकिन दुर्योधन की बुरी संगत के कारण बुद्धि भ्रष्ट हो गई, जिस कारण वह मारा गया।