हिमशिखर खबर ब्यूरो
जिस प्रकार बीज गणित में बड़ी-बड़ी संख्याओं को समझने के लिए ‘क’, ‘ख’, या ‘अ’, ‘ब’ आदि अक्षरों का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार ‘सत्य’ को जानने और उसका अनुभव करने के लिए ‘ओउम्’ यह एक मात्र शब्द है। उपनिषद् के ऋषियों ने इसे ‘एकाक्षर ब्रह्म’ कहा है।
यह पवित्रों में पवित्र है, यह ईश्वर या परमात्मा की सर्वोच्च शक्तियों से परिपूर्ण है। उच्च स्वर में किया गया इसका नाद इसीलिए समस्त आपदाओं, विपत्तियों और दुखों से दूर कर देता है। इसका नाद करते समय यह अनुभव करें कि परमात्मा ही एकमात्र सत्य है-इसकी आपको प्रत्यक्ष अनुभूति होनी चाहिए।
‘अ’, ‘उ’, ‘म्’, में ‘अ’ अक्षर को कभी-कभी किसी मंत्र या किसी अन्य रूप की संज्ञा दी जाती है। इसी प्रकार ‘उ’ का भी प्रायः किसी मंत्र या किसी विशेष रूप के नाम से उच्चारण किया जाता है। ‘म्’ को भी किसी मंत्र या किसी निर्दिष्ट रूप से विभूषित किया जाता है। परंतु ‘ॐ’ या ‘ओउम्’ किसी मंत्र या रूप पर अवरूद्ध नहीं होता। वह तो सत्य, नकद वास्तविकता का प्रतीक हे। जितने भी मंत्र हैं, उन सबमें यही वास्तविकता, यही सत्यता प्रवाहित होती है।
आपके सामने यह स्पष्ट रूप से सिद्ध किया जाता है चुका है कि ‘अ’, ‘उ’, ‘म्’ की संधि से बने मूल मंत्र द्वारा हिंदू लोग, विशेषकर, वेद और उसके आधारभूत सत्य को आत्मसात् करने का गुर प्राप्त करते हैं। आधारभूत सत्य आप ही हैं। ‘ओउम्’ का तात्पर्य सभी दृश्यमान, भासमान परिवेश के पीछे अधिष्ठान, सत्य से है। शाश्वत सत्य है। अविनाशी आत्मा है। यही आत्मा आप हैं। इसलिए जब आप के पवित्र मंत्र का गायन करें, उस समय आप अपनी बुद्धि, अपने शरीर को अपनी वास्तविक आत्मा में विलीन कर दें।