मांगलिक ऊषा का हार्दिक अभिनन्दन एवं सुस्वागत
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
आज हमें स्वाधीन हुए 74 वर्ष हो गए हैं। स्वाधीनता के इस पायदान पर पहुंचने के लिए अनेक महान आत्माओं को दृश्य या अदृश्य, लौकिक या अलौकिक रूप से अपने जीवन की आहुतियां देनी पड़ी, तदनन्तर ही इस स्वतंत्र भारत का सौभाग्य हमें नसीब हो सका। इसके लिए अनेकों सपूतों को शहीद होना पड़ा होगा (यह हम कल्पना ही कर सकते हैं ) ।
शहीद का सच्चा अर्थ स्व का पर के लिए समग्र समर्पण ही है या हो सकता है, शहीद वह है जो वासना, तृष्णा से मुक्त है साथ ही अहंता से भी मुक्ति पा चुका है। मानव वासना के पीछे भागता है, तृष्णा की आग में सतत जलता है। ऋषि तथा शहीद हमेशा प्रकाश स्तम्भ की तरह ज्योतिर्मय रहते हैं, अनन्त अन्तरिक्ष में ध्रुव तारे की तरह जगमगाते रहते हैं, जीवन के हर मोड़ पर क्रान्ति का नया अध्याय लिखते हुए अनेकों सपूतों को साहस भरे पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।
आज उन्हें श्रद्धांजलि देने का मौका इस पीढ़ी को मिला है, अतः सच्ची श्रद्धांजलि वह होगी कि हम समर्पण की भावना से इस देश की रक्षा व सुरक्षा कर किसी के सत्व का अपहरण न करें, ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करें।यदि हमें विश्वास हो तो यही सत्य है और भारत का सुनिश्चित एवं गौरवशाली भविष्य भी यही है, क्योंकि भारत एक पुण्य भूमि है।
‘हम स्वाधीन हैं। इसका अभिप्राय यह नहीं है कि हम जो चाहे बोलें, जो चाहें खाएं, जैसा चाहें रहें, जहां चाहें जाएं ? नहीं अर्थ है कि हम अपनी मर्यादा में रहकर देश को उन्नति के पथ पर अग्रसर करने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान व सहयोग करें। तो वह होगी सच्ची स्वाधीनता। ‘
तो आइए मानवता की गरिमा को बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर पचहत्तरवें स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व को यादगार बनाने का प्रयास करें, राष्ट्र हित सर्वोपरि है, तभी आत्मिक उन्नति होगी।
आज स्वतंत्रता के लिए हुई हुतात्माओं की याद में व्यक्तिगत रूप से रौंसली, पीपल व मोरपंखी के पौधों को भी लगा रहा हूं, जिससे यह स्वतंत्रता दिवस यादगार बना रह सके।
जय हिन्द , जय भारत, वन्दे मातरम्
“मंगलमय भविष्य की हार्दिक शुभकामनाओं सहित, मधुमय प्रभात”