मंगलवार खास : संसार के सबसे बड़े मैनेजमेंट गुरु हनुमानजी

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हनुमानजी का नाम जब भी मन में आता है तो उनकी अपार शक्ति और परम भक्ति ही याद आती है। लेकिन गौर से देखें तो बजरंग बली के जीवन में संतुलन का दर्शन हैं। अपनी सूझ-बूझ और सही तालमेल से ही उन्होंने प्रभु श्रीराम के सभी कार्य पूरे किए। जिस भी काम में बजरंगबली ने हाथ डाला उसे पूरा करके ही दम लिया। जानते हैं, कैसे हनुमान जी हैं संसार के कुशल मैनेजर-

 पंडित उदय शंकर भट्ट

हनुमानजी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भक्त हैं। हनुमान जी भक्तों में सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं। उनके मन में हमेशा श्रीराम बसते हैं। श्रीराम के आगे आयी हर अड़चन को हनुमान ने अपने मैनेजमेंट से दूर कर दिया था। रामायण में जिस कुशलता से हनुमान जी ने तमाम समस्याओं को हल किया, वो बिना सही मैनेजमेंट के मुमकिन नहीं था। हनुमान जी समय, ज्ञान, वाणी और संसाधनों का सटीक प्रयोग करना जानते हैं, इसीलिए उन्हें संसार का सबसे बड़ा मैनेजमेंट गुरु कहा जाता है।

आज के दौर में लगभग हर इंसान जीवन में असंतुलन के दौर से परेशान है। हर किसी को रोज चौबीस घंटे मिलते हैं, लेकिन बहुत कम लोग अपने समय का सही तरीके से इस्तेमाल कर जिंदगी में तालमेल बिठा पाते हैं। मैनेजमेंट की सारी तरकीबें अक्सर फेल हो जाती हैं। ऐसे में हनुमान जी हमारे जीवन में चमत्कार जैसा बदलाव ला सकते हैं। महाबली के जीवन की हर कहानी कुशल मैनेजमेंट का पाठ सीखाती है।

हनुमान जी अपने प्रबंधन गुणों के साथ ऐसी छवि पेश करते हैं, जिसे हर युवा अपनाना चाहता है। राम भक्त हनुमान के जीवन दर्शन से यह संदेश मिलता है कि वे ही आधुनिक प्रबंधन के आदि गुरु हैं। हनुमान ही हैं जो हमें सिखाते हैं कि आम बने रहकर भी कैसे व्यवहार करें, कैसे बोलें, काम करें और जीएं। उनकी दूरदर्शिता शिक्षा आज भी प्रासंगिक हैं। जिनका अनुसरण कर लोग जीवन में सफलता हासिल कर सकते हैं।

रामायण में हनुमान का मैनेजमेंट श्रीराम के वनवास के दौरान दिखाई देना शुरू होता है। वन में राम के मिलने के साथ ही हनुमान को लगता है कि उनका जो लक्ष्य था, वह मिल गया है। इसके बाद उन्होंने सर्वस्व राम को समर्पित कर दिया। वर्तमान मैनेजमेंट में भी यही बात है कि एक बार आप जिस कंपनी या प्रोफाइल पर चले जाते हैं, वहां पर अपना सौ प्रतिशत देना होता है।

मैनेजमेंट का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काम है कंपनी के लिए आवश्यक निर्णयों में उचित सलाह देना। हालांकि विजय की यात्रा राम की थी लेकिन सीता की खोज करना, रावण की सभा में दूत बनकर पहुंचने में उनका कौशल दिखाई देता है।

आगे बढ़कर राह को आसान बनाना
राम और लक्ष्मण अपने तरीके से सीता को खोज कर रावण और उसकी सेना का वध कर सकते थे। मगर हनुमान जी के प्रबंधन गुणों ने श्रीराम की राह को आसान बना दिया। जंगल में राम से मिलने के बाद उन्होंने बाली और सुग्रीव की लड़ाई के बारे में श्रीराम को जानकारी दी। बाली को मारने का तरीका बताया और सुग्रीव का राज्याभिषेक कराकर वानर सेना को साथ में लिया। इसके बाद शुरू हुआ सीता को खोजने का काम। इसके लिए दलों का गठन किया गया और हर किसी को निश्चित क्षेत्रा और जिम्मेदारियां दी गयीं।

एक स्मार्ट मैनेजर की तरह हनुमान ने स्वयं सबसे कठिन रास्ते का चुनाव किया और साथियों को अपेक्षाकृत सुगम रास्तों पर भेजा। काम में आई बाधा ने हनुमान की खोई शक्तियों को लौटा दिया। भले ही इस काम में जामवंत माध्यम बने, लेकिन अंततः हनुमान ने अपनी शक्तियों को वापस पा लिया।

आधुनिक प्रबंधन में भी कमोबेश यही हालात होते हैं। कठिन परिस्थिति न केवल अम्ल परीक्षण करती हैं, बल्कि प्रबंधक के गुणों में भी बढ़ोतरी करती हैं। पूर्व तैयारी और त्वरित निर्णय सीता की खोज के लिए रवाना होने से पूर्व हनुमान ने पूर्ण विश्वास किया कि उन्हें सीता मिल ही जाएगी।

ऐसे में उन्होंने राम से उनकी निशानी मांगी, ताकि वे सीता को भरोसा दिला सकें कि वे राम के ही दूत हैं। बाद में अशोक वाटिका में सीता के ऊहापोह को उसी अंगूठी को दिखाकर हनुमान ने खत्म किया था। आधुनिक मैनेजमेंट में भी कमोबेश ऐसे ही विश्वास और पूर्व तैयारियों की जरूरत है। प्रोजेक्ट की शुरूआत में ही बाद में आने वाली समस्याओं के हल के साथ लेकर चला जाए तो फंसने की आशंका कम रहती है।

गजब का आत्मविश्वास
अपने स्वामी में अगाध आस्था और उनके लिए कुछ भी कर गुजरने की सोच को आज भी अपनाया जा सकता है। रावण के सैनिकों द्वारा पकड़े जाने पर हनुमान ने अपना आत्मविश्वास नहीं खोया। उन्होंने राम के दूत के तौर पर रावण से बात की। जब रावण नहीं माना और उनकी पूंछ में आग लगा दी तो उन्होंने बिना शीर्ष नेतृत्व के संकेत का इंतजार किए अपने स्तर पर निर्णय किया और पूरी लंका में आग लगा दी।

दुश्मन के खेमे में सेंध
लंका में अपने पहले ही भ्रमण में हनुमान ने विभीषण की खोज भी की। उन्हें पता था कि दुश्मन की नगरी में श्रीराम के पक्ष का एक भी व्यक्ति हुआ तो युद्ध में बहुत काम आ सकता है। विभीषण ने हनुमान को अपना दुख बताया कि वे दांतों के बीच जिह्वा की तरह लंका में रह रहे हैं। यानि चारों ओर अलग विचारों और क्षमताओं वाले लोग हैं और वे खुद को वहां पफंसा हुआ सा महसूस करते हैं।

हनुमान ने इस स्थिति को समझा कि दुश्मन की नगरी में एक व्यक्ति को अपने पक्ष में किया जा सकता है। भले ही विभीषण पहले से श्रीराम के भक्त रहें हो, लेकिन लंका की अपनी पहली ही यात्रा में हनुमान ने उन्हें श्रीराम की सेना का हिस्सा बना दिया था। बाद में विभीषण ने ही राम को बताया कि रावण की नाभि में जमा अमृत कलश को नष्ट किए बिना रावण नहीं मर सकता।

सूक्ष्म और विराट रूप
हमेशा ताकत ही काम नहीं करती बल्कि समय और मांग के अनुसार अपने रूप में भी परिवर्तन करना पड़ता है। हनुमान ने ही सिखाया कि जब अपने स्वामी को कांपिफडेंश दिलाना हो तो अपना विराट रुप दिखाना होता है और जब लंका में घुसना हो तो सूक्ष्म रूप भी अपनाना पड़ता है। हनुमान जी के पास हर समस्या का समाधान होता है। वह कभी भी किसी काम को पूरा किए बिना वापस नहीं होते।

समाधान के लिए पहाड़ उठाया
रामायण में एक प्रसंग है कि रावण की सेना से युद्ध के दौरान लक्ष्मण जब मुर्छित हो गए तो वैद्य ने बताया हिमालय पर्वत में संजीवनी नाम की दवा है। तब इस कठिन परिस्थति में श्रीराम ने सोचा कि संजीवनी बूटी लाने की जिम्मेदारी हनुमान जी को ही दी जा सकती है। क्योंकि हनुमान जी को जवाबदेही, स्वामित्व, इनीसिएटिव और रिस्पांसिबिलिटी का जीता-जागता उदाहरण माना जाता है।

श्रीराम के आदेश पर हनुमान जी कह सकते थे, संजीवनी बूटी लाने का कठिन काम किसी और को दे दीजिए। मगर हनुमानजी ने जिम्मेदारी को स्वीकार कर बूटी लेने के लिए तीव्रता से चल पड़े। हिमालय पहुंचने पर उन्हें समझ नहीं आया कि संजीवनी बूटी कौन सी। ऐसे में हनुमानजी वापस लौटकर श्रीराम से पूछ सकते थे कि आपने सेंपल स्पेसिफिकेशन तो दिया ही नहीं। अगर आप सेम्पल दिखा देते तो लाने में आसानी होगी। मगर हनुमानजी ने ज्यादा देर न करते हुए पूरा पर्वत ही उठाकर लंका पहुंचा दिया ताकि पहाड़ में मौजूद दवाई मिल सके।

यह प्रसंग सीख देता है कि जब जरूरत हो तो संजीवनी बूटी के लिए पूरा पहाड़ भी उठाकर लाया जा सकता है। मानव संसाधन के बदलते रूप में आज भी ऐसे कार्मिकों की जरूरत बताई जा रही है, जो संस्थान में हर तरह का काम कर सके। उन्हें अपने मूल काम के अलावा कंपनी के अन्य विभागों के काम की जानकारी भी होनी चाहिए।

आवश्यकता होने पर वे संदेशवाहक अथवा मालिक के प्रतिनिधि के तौर पर जिम्मेदारी के साथ काम कर सकें। इसमें भी मानव संसाधन विभाग की भूमिका जामवंत की तरह महत्वपूर्ण हो जाती है जो हनुमान जैसे कार्मिकों को उनकी क्षमताएं याद दिलाएं।

हनुमान जी कैसे हुए इतने कामयाब?
परम शक्तिशाली होने के बावजूद हनुमान जी को कभी अपनी बल-बुद्धि का घमंड नहीं हुआ। हनुमान जी ने अपने हर काम का श्रेय प्रभु श्रीराम को दिया। इस तरह हनुमानजी अहंकार से बचे रहे और श्रीराम की कृपा से हमेशा सफल हुए। बजरंगबली के जीवन से हमें भी लेनी चाहिए घमंड न करने की सीख। क्योंकि अहंकार से बचे रहेंगे तो तभी सफलता का आनंद देर तक उठाते रहेंगे।

 

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