मानव ईश्वर की बहुमूल्य रचना

Uttarakhand

” *उषा की लालिमा का हार्दिक अभिनन्दन एवं सु स्वागत* ”

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

“‘ *हम ईश्वर की बहुमूल्य रचना हैं। हमारी अपनी पहचान है , अपनी मौलिकता है, वास्तविकता है, जो हमें अन्य व्यक्तियों से अलग करती है। हमें किसी के जैसा नहीं, अपितु अपने जैसा बनना है अर्थात जैसे हैं वैसा ही रहना है, रहना चाहिए , वैसा ही बनना चाहिए। यदि हम दूसरों से तुलना करना छोड़ दें तो बहुत कुछ आनन्द की वृष्टि हमारे जीवन में हो सकती है।

यदि हमें अच्छा बनना है तो अपना मूल्यांकन करना है, करना चाहिए व अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए । ऐसे करने से हमारे व्यक्तित्व का विकास होगा व व्यक्तित्व में निखार आएगा। व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास के लिए आत्म मूल्यांकन की अति आवश्यकता है। अतः हम जैसे हैं वैसे ही अच्छे हैं। प्राय: हम जब यह देखते हैं कि अमुक व्यक्ति ने यह अच्छा काम किया तो या तो ईर्ष्या के कारण या दिखावे के लिए हम वैसा ही कार्य करते हैं और शायद यह भूल जाते हैं कि नकल के लिए अक्ल भी चाहिए जो कभी कभी कम पड़ जाती है।

हम दूसरों को बार-बार नसीहत देते हैं कि अच्छा व्यवहार करें , अच्छा वर्ताव करें दूसरों का अहित न करें , पर इस प्रेरणा पर स्वयं कितने अग्रसर होते हैं यही विचारणीय है, यही करणीय है, इस पर स्वयं को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ।*

*आत्मवत् सर्व भूतेषु य:पश्यति स पश्यति* । ( स पण्डित:) ।
” *एक प्रयास किया जाय, अहंकार त्यागकर, परिणाम क्या मिलेगा, इसका मूल्यांकन तब ही किया जा सकता है*। ”
*मंगलमय जीवन एवं भविष्य की शुभकामनाओं सहित सुप्रभातम्* ।

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