आज का चिंतन : चरित्र होना चाहिए महान

Uttarakhand

चरित्र की बलपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता जाता रहता है। धन के नष्ट होने पर चरित्र सुरक्षित रहता है, लेकिन चरित्र के नष्ट होने पर सब-कुछ नष्ट हो जाता है।


पंडित हर्षमणि बहुगुण

यदि जीवन का लक्ष्य ऊंचा व ध्येय महान हो तो अपने व्यक्तित्व को उतना ही धीर- गम्भीर एवं मजबूत बनाना पड़ता है। उसकी क्षुद्रताओं व संकीर्णताओं को तिलांजलि देनी पड़ती है अन्यथा छोटी मोटी घटनाएं ही व्यक्तित्व को धराशाई कर देने के लिए पर्याप्त होती है, जबकि अपने व्यक्तित्व को गम्भीर, परिपक्व व मजबूत बनाने वाले व्यक्ति बड़े से बड़े घटनाक्रमों के सम्मुख थोड़ा सा भी नहीं घबराते हैं।

भवनों का निर्माण करना हो तो पहले नींव खोदनी पड़ती है । इसी प्रकार व्यक्तित्व निर्मित करने से पहले –ज्ञान, चिन्तन, चरित्र को गहरा, सुगठित व सशक्त बनाने का कार्य पूरा करना पड़ता है। जैसे गहरी नींव वाले भवन आंधी, तूफान व भूकम्प के झटकों को सहजता से सहन कर जाते हैं।

वैसे ही साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा के सूत्रों को आत्मसात करने के बाद निर्मित हुए व्यक्तित्व के धनी मानव कितना भी कठिन से कठिन समय हो उसे सुगमता के साथ पार कर जाते हैं। व्यक्तित्व मजबूत बनाना हो तो मनोबल को भी मजबूत बनाना पड़ता है। मजबूत मनोभूमि ही सशक्त व्यक्तित्व की बुनियाद कही जा सकती है।

“प्राय: हमारे दु:ख, दरिद्रता, कष्ट, पीड़ा का न तो कोई कारक है न कोई देने वाला है। फिर भी यदि कोई चाह कर, या जान बूझ कर विपत्ति में झोंकता है तो यह शाश्वत सत्य है कि वह भी आन्तरिक रूप से स्वस्थ नहीं रह सकता, जो पीड़ा मुझे मिल गई वह दूर भी नहीं हो सकती, अतः अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की कोशिश हमें करनी चाहिए।

हम दूसरों के सुख दु:ख में सम्मिलित होने के लिए तैयार रहते हैं, किसी का खुशी का मौका और हमें यदि अपना दु:ख याद आता है तो वहां आंसू बहाने की अपेक्षा स्वयं को दृढ़ बनाने की आवश्यकता है, अथवा जहां हमें हमारा दु:ख याद आये वहां जाना ही नहीं चाहिए। जिससे मन की पीड़ा को कोई महसूस न कर सके। तभी व्यक्तित्व आकर्षक हो सकता है। अन्यथा उपहास के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिल सकता है। जड़ें यदि गहरी हों तो पेड़ों को ऊंचा उठते, विशाल वृक्ष बनते देर नहीं लगती।

“यह सिद्धांत भारतीय जीवन एवं व्यक्तित्व पर भी उतनी ही सत्यता के साथ खरा उतरता है” जितना अन्य पर।”

“हमारा चरित्र इतना महान होना चाहिए कि जो दु:ख हमें मिला वह कभी भी किसी को न मिले, ऐसी कामना हो “

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