क्या होती है भद्रा? क्यों मानी जाती है अशुभ?

किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है। खासतौर पर जब भी रक्षाबंधन का त्यौहार आता है सबसे पहले यह देखा जाता है कि भद्रा कब है। भद्रा में राखी न बांधी जाए ऐसा भी कहा जाता है। क्योंकि भद्रा काल में मंगल-उत्सव की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी जाती है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ये भद्रा होती क्या है? इस लेख में जानते हैं कि आखिर क्या होती है भद्रा और क्यों इसे अशुभ माना जाता है?

पंडित उदय शंकर भट्ट
सनातन धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले हम मुहूर्त निकालते हैं। वैदिक ज्योतिष में मुहूर्त निकालने के दौरान भद्रा का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। खास बात यह है कि यदि मुहूर्त शुभ भी हो लेकिन यदि उस समय भद्रा का प्रभाव हो तो कार्य में बाधा आ सकती है। यही कारण है कि भद्रा के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। भद्रा का प्रभाव स्वर्ग लोक, पाताल लोक और पृथ्वी लोक तीनों लोकों पर होता है।

सूर्यदेव की पुत्री और राजा शनि की बहन है ‘भद्रा’

Uttarakhand
पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और राजा शनि की बहन है। इनका विकराल रूप काला, लंबे बालों और दांतों वाला है। भद्रा का जन्म असुरों के नास के लिए हुआ। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया। यह भद्राकाल के रूप में आज भी विद्यमान है।
पंचांग में भद्रा का महत्व 
हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये हैं- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है।
भद्रा का वास
तीनों लोक में भद्रा का वास है। ये तीनों लोकों में विचरण करती रहती है। जब चंद्रमा, मेष, वृष राशि में होता है तो भद्रा का वास स्वर्ग में होता है। जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु राशि में स्थित होता है तब भद्रा का वास पाताल लोक में होता है। जब चंद्रमा सिंह, कुंभ और मीन राशि में स्थित होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी लोक में होता है। पृथ्वी लोक में वास के समय भद्रा का मुख सामने की ओर होता है। वहीं स्वर्ग लोक में वास के समय इसका मुख ऊपर की ओर होता है। जबकि पाताल लोक में वास के समय मुख नीचे की ओर होता है।

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