सुप्रभातम् : एक बरगद के पेड़ की मार्मिक कहानी


परोपकार ही जीवन है। ईश्वर ने सभी प्राणियों में सबसे योग्य मनुष्य को बनाया है। परोपकार ही एक ऐसा गुण है जो मानव को पशु से अलग कर देवत्व की श्रेणी में ला खड़ा करता है। पशु और पक्षी भी अपने ऊपर किए गए उपकार के प्रति कृतज्ञ होते हैं। मनुष्य तो विवेकशील प्राणी है उसे तो पशुओं से दो कदम आगे बढ़कर परोपकारी होना चाहिए। प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है।

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बरगद के पेड़ को हिंदू धर्म में पवित्र वृक्ष मना गया है। ऐसा ही एक बरगद का वृक्ष एक गांव में था। स्त्री हों या पुरुष त्योहारों पर उसकी पूजा करते थे। समय बीतता गया और वृक्ष बढ़ता गया। बरगद का वृक्ष बहुत पुराना हो गया तो उसकी डालियां सूखने लगीं और टूटकर बिखरने लगीं।

बरगद के वृक्ष की हालत को मद्देनजर ऱखते हुए गांव में पंच बैठे, तय हुआ कि वृक्ष को काट दिया जाए और लकड़ियों को घरेलू उपयोग में लाया जाए। पंच ने इस बात को सहमति दे दी।

अगले दिन सुबह से ही गांव वाले बरगद के वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी लेकर पहुंचे। बरगद के पेड़ के नजदीक ही एक ओर पेड़ था, वह बरगद से बोला, ‘मान्यवर ! आपको क्रोध नहीं आ रहा है। ये मनुष्य कितना स्वार्थी है। जब आपकी आवश्यकता थी तो ये सभी आपको पूजते थे। और जब आप बूढ़े हो गए हैं तो ये आपका अंत कर रहे हैं।’

बरगद के वृक्ष ने कहा, ‘नहीं दोस्त! मैं प्रसन्न हूं। कि मरने के बाद भी इनके काम आ सकूंगा। यह परोपकार है।’

सीख – परोपकार करना हमारे जीवन का पहला उद्देश्य होना चाहिए। पेड़ परोपकार के लिए फल और लकड़ियां देते हैं। नदी परोपकार के लिए जल देती है। यानी प्रकृति के पंच तत्व परोपकार करते हैं। इसलिये मनुष्य को भी परोपकार करना चाहिए।

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