भगवान श्रीकृष्ण और लाखों-करोड़ों की आस्था की यमुना भारत की संस्कृति की संवाहक है। तकनीकी विकास ने जलीय और वायुमंडलीय पर्यावरण को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। प्रकृति भूगोल बनाती है, जबकि मानव इतिहास बनाता है। यमुना दर्शन यात्रा के जरिए नदियों को स्वच्छ रखते हुए उनकी उपयोगिता आधुनिक विकास के साथ ही संस्कृति के संवाहक के तौर पर बरकरार रखना है
देहरादून
देश के जाने-माने विचारक और भारतीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि प्रकृति केंद्रित विकास की आज के समय में जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्रकृति केंद्रित विकास के लिए साहस और साधन भी है। जरूरत है कि शासन व प्रशासन में बैठे हुए जिम्मेदारों को इसके अनुसार योजनाएं बनानी हैं।
शनिवार को विकासनगर के डाकपत्थर में विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना के बाद राष्ट्रीय चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने यमुना यात्रा एवं अध्ययन प्रवास यात्रा का श्रीगणेश किया।
प्रसिद्ध विचारक गोविंदाचार्य ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम केंद्रित विकास की बजाए प्रकृति केंद्रित विकास की ओर चलें। सृष्टि पंचमहाभूत और पंचतंत्र मात्राओं से रची गई है, जिन्हें उनके स्वभाव में एकत्रित करना प्रकृति केंद्रित विकास है। उन्होंने कहा कि कोरोना व ग्लेशियर पिघलना हमें आगाह कर रहा हैै।
उन्होंने कहा कि संतों ने बताया है कि गंगा ज्ञान की नदी, यमुना प्रेम की नदी ओर नर्मदा वैराग्य की नदी है। उन्होंने गोमाता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गो का अर्थ प्रकृति है। गोमाता मनुष्य के लिए प्रकृति संरक्षण का अवसर है। उन्होंने कहा कि गौ माता को आर्थिक आधार पर प्रतिष्ठापित करना होगा। कृषि को गो पालन से जोड़ने की बहुत आवश्यकता है।
आगे गोविंदाचार्य ने कहा कि यात्रा में लोगों से चर्चा के उपरांत यमुना संरक्षण की दिशा में क्या किया जा सकता है, इस पर विचार करेंगे। बताते चलें कि यमुना दर्शन यात्रा यमुनोत्री से शुरू होनी थी, लेकिन भूस्खलन होने की वजह से हाईवे बंद होने के कारण विकासनगर के डाकपत्थर से यात्रा का शुभारंभ किया गया। यात्रा 14 सितंबर को प्रयागराज में संपन्न होगी।
इस मौके पर बसवराज पाटिल, पवन श्रीवास्तव, जीवकांत झा, यात्रा मीडिया समन्वयक विवेक त्यागी आदि मौजूद थे।