प्राकृतिक आपदा कारण व निवारण के उपाय

हर्षमणि बहुगुणा

Uttarakhand

प्राय: पर्वतीय राज्यों, जनपदों व क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदायें आती रहती हैं और जनसामान्य इनका दोष सरकारों पर थोप देता है, पर जहां तक इसके कारणों का अन्वेषण किया जाय तो इन आपदाओं के कारण हम स्वयं हैं और प्रकृति को दोषी मानते हैं। जहां तक मुझे याद है कि पहले तो इससे अधिक वर्षा होती थी, सर्दियों में इस क्षेत्र में सोलह सौ मीटर की ऊंचाई तक दो से तीन फुट से भी अधिक बर्फबारी होती थी, कभी कभी तो मार्च-अप्रैल तक भी बर्फबारी हुई है। जुलाई अगस्त और सितम्बर तक भारी से भारी बारिश होती थी। तब न विद्यालय में अवकाश घोषित होता था न इतना भय व्याप्त रहता था जितना अब है। इसके कुछ सामान्य कारण हैं जैसे यातायात की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए सड़कों का निर्माण किया जा रहा है, / किया जाता है।

सड़कें पक्की हो रही हैं। डंपिंग जोन लापरवाही से बनाए जाते हैं, जहां स्कबर बनने चाहिए वहां नहीं बनते हैं। कुछ मिली भगत से तो कुछ निर्माण करने वाले अभियन्ताओं की अनभिज्ञता के कारण, और समूचा पानी इकट्ठा होकर नदी का रूप धारण कर आगे जाकर मलबे सहित बहुत भारी क्षति करता है। यह केवल सड़कों के निर्माण के कारण ही है, अन्य बहुत से उदाहरण हैं। अब हमारे-आपके कारण भी हैं जैसे घर, गांव या कस्बों में सभी मकान पक्के, आंगन पक्के पानी का बहाव छत का, आंगन का, एक स्थान से और आधे घंटे की वर्षा से भी छत व आंगन का पानी का सैलाब नाले का रूप ले लेता है, इस तरह पूरे गांव या कस्बे का बर्षाती पानी एक नदी का रूप धारण करता है जो क्षति करेगा ही, और हम कहते हैं कि बहुत अधिक बर्षा हुई है। बर्षा उतनी नहीं होती पर सब पानी इकट्ठा होकर यह महसूस करवाता है कि बहुत अधिक बर्षा हुई है। पहले सात- सात दिनों तक लगातार बरसात हमने देखी है, इसके अतिरिक्त अन्य कारण भी हैं सब समझते हैं जिन्हें दूर किया जा सकता है।है।

इन कारणों का निवारण भी किया जा सकता है, वह उपाय आसान हैं, बस ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसे जब भी सड़क निर्माण किया जाय तो स्कवर अवश्य बनाएं जायं, पानी का ढलान एक जगह ही न रखा जाय, अतः पन कट्टे बरावर बरावर बनाए जाय। डंपिंग जोन को इस तरह बनाया जाना चाहिए कि पानी के कटाव से वह मिट्टी बहने न पाय, अन्यथा वह बहुत बड़ी आपदा का कारण बन सकती है। गांव घरों में या कस्बों में बरसाती पानी को एकत्रित करने के लिए भूमि गत टैंक बनवाने चाहिए।

मैंने आज से दस साल पहले और फिर बार बार कृषि विभाग व उद्यान विभाग से चाहा था कि मैं एक भूमि गत टैंक बनवाना चाहता हूं जो एक यूनिक हो, अनुपम हो। इस प्रकार का टैंक जिसमें छत का पानी एकत्रित होकर वर्ष भर की सिंचाई का कार्य करने में मदद कर सकता है केवल सिंचाई ही नहीं घरेलू अन्य उपयोग में पानी को लाया जा सकता है यहां तक कि पीने के उपयोग में भी किया जा सकता है इससे पानी की बचत के साथ प्राकृतिक आपदा से निपटने में भी मददगार साबित हो सकता है। इतना ही नहीं बल्कि भूमि के अन्दर जल के स्तर को बढ़ाने में/ऊंचा उठाने में सहयोगी बन सकता है । शायद बड़े शहरों में या बड़े बड़े होटलों में यह व्यवस्था लागू हो रखी है। मैं व्यक्तिगत रूप से छत के पानी का सदुपयोग करता आ रहा हूं । पर कष्ट होता है कि सहयोगी विभाग कुछ चहेतों को ही लाभान्वित करते हैं या सम्यक जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है। इस वर्ष ज्ञात हुआ कि भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा कृषि विभाग के सौजन्य से कुछ बीज एवं खाद उपलब्ध करवाई गई पर यह भी संज्ञान में आया कि उक्त सामग्री सब लोगों तक नहीं पहुंच पाई कारण कुछ भी रहा हो पर यह भी सुना गया कि खाद तो भीग कर नष्ट ही हुई, ढेलों में परिवर्तित हो गई, जो एक दुर्भाग्य है या लापरवाही का संकेत है हर तरह की सहायता का सदुपयोग होना चाहिए। समाचार तो ऐसे भी मिलते हैं कि पशु चारा गाह, गौशाला, बकरी बाड़ा या अन्य सहायताएं उन्हें उपलब्ध हुई जिनको इनकी आवश्यकता ही नहीं थी। सच्चाई कितनी है यह तो शोध का विषय है। पर इतना अवश्य है कि यदि ऐसा है तो यह हमारी लापरवाही का द्योतक ही है । तो आइए विचार करें कि भविष्य में आपदाओं से निपटने के लिए सच्चे मन से देश हित को अनदेखा नहीं करेंगे। इसी में सबकी भलाई है। जल ही जीवन है, इसकी सुरक्षा का दायित्व भी हमारा ही है। जल की सुरक्षा से आपदा का संकट भी दूर होगा, प्रयोग करने में कोई हर्ज नहीं है । यह एक बानगी मात्र है और भी बहुत से कारण हैं जो सबके जहन में हैं, निवारण का प्रयास जरूरी है।

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