हर्षमणि बहुगुणा
आज शिक्षक दिवस है, सर्व प्रथम शिक्षक दिवस पांच सितंबर सन् 1962 में मनाया गया था और तब से लगातार डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डाक्टर राधा कृष्णन केवल शिक्षक ही नहीं थे अपितु वे यूनेस्को व मास्को में भारत के राजदूत भी रहे , स्वतंत्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति व दूसरे राष्ट्रपति बनें।
सन्1954 में उन्हें भारत सरकार द्वारा अपने सर्वोच्च पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। 1961 में जर्मन ‘बुक ट्रेड ‘ ने उन्हें शान्ति पुरस्कार प्रदान किया। वे बहुत दयालु थे। राष्ट्रपति भवन में उनसे मिलने कभी भी कोई भी जा सकता था। तब उनका वेतन दस हजार रुपए था पर वे केवल ढ़ाई हजार रुपए ही वेतन लेते थे व शेष राशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करवा देते थे। 17- 07 – 1975 में डाक्टर राधा कृष्णन का शरीर शान्त हुआ। आज इस पुनीत पर्व पर अपने ज्ञात*- *अज्ञात सभी शिक्षकों को ‘ हृदय से कोटि-कोटि नमन करते हुए’ ‘ अपने विशिष्ट गुरुजनों*— *यथा- जन्म दाता जन्म गुरु , उपनयन गुरु , दीक्षा गुरु , अल्पज्ञ को मार्ग दर्शनार्थ ज्योतिष गुरु , क्योंकि*—
*अप्रत्यक्षाणि शास्त्राणि* *विवादस्तेषु केवलम्*।
*प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रं , चन्द्रार्कौ यत्र साक्षिणौ ।।
*प्रात: स्मरणीय पूज्य पिताश्री , श्री मनोहर लाल बहुगुणा जी, श्री कपिल देव बहुगुणा जी, श्री सत्य कृष्ण बहुगुणा जी ( सभी प्रात: स्मरणीय) को इस शिक्षक दिवस के सु अवसर पर अपनी भावपूर्ण पुष्पांजलि व श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा हूं । अर्पण में समर्पण भी है, अर्पण तो दर्पण है, फिर उनके प्रदर्शित आदर्श ( दर्पण ) पर अग्रसर (चलने का) होने का प्रयास है । भावांजलि के साथ मेरा कोटि-कोटि नमन , प्रणाम व विनम्रता पूर्वक प्रार्थना कि सन्मार्ग का दर्शन अवश्य करवाते रहेंगे। गत वर्ष दो सितंबर से एक प्रयास प्रारम्भ किया था कि “इस देवभूमि उत्तराखंड की काशी की कुछ विभूतियों को अपने श्रद्धासुमन समर्पित कर उन्हें याद कर सकूं ” प्रयास सफल कहा जा सकता है , अभिलाषा अभी अधूरी है, आशा है प्रात: स्मरणीय गुरु जनों की कृपा से पूरी होंगी।