गणपति की पूजा में दूर्वा को चढ़ाने की परंपरा है। अमृत समान गुणकारी दूर्वा का महत्व जानने के लिए पढ़ें ये लेख-
पंडित उदय शंकर भट्ट
भगवान गणेश की पूजा में खासतौर से दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है। माना जाता है दूर्वा से गणेशजी की विशेष पूजा करने से परेशानियां दूर होती हैं और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। पुराणों में कथा भी है, जिसमें राक्षस को मारने के बाद गणेशजी को दूर्वा चढ़ाई और तब से परंपरा चली आ रही है।
दूर्वा चढ़ाने की परंपरा क्यों
गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने के पीछे अनलासुर नाम के असुर से जुड़ी कथा है। कथा के मुताबिक अनलासुर के आतंक की वजह से सभी देवता और पृथ्वी के सभी इंसान बहुत परेशान हो गए थे। तब देवराज इंद्र, अन्य देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव के पास पहुंचे। शिवजी ने कहा कि ये काम सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। इसके बाद सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान गणेश के पास पहुंचे।
देवताओं की प्रार्थना सुनकर गणपति अनलासुर से युद्ध करने पहुंचे। काफी समय तक अनलासुर पराजित ही नहीं हो रहा था, तब भगवान गणेश ने उसे पकड़कर निगल लिया। इसके बाद गणेश जी के पेट में बहुत जलन होने लगी। जब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर गणेश जी को खाने के लिए दी। जैसे ही उन्होंने दूर्वा खाई, उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई।
दूर्वा के बिना अधूरे हैं कर्मकांड और मांगलिक काम
हिन्दू संस्कारों और कर्मकाण्ड में इसका उपयोग खासतौर से किया जाता है। हिन्दू मान्यताओं में दूर्वा घास प्रथम पूजनीय भगवान श्रीगणेश को बहुत प्रिय है। इसलिए किसी भी तरह की पूजा और हर तरह के मांगलिक कामों में दूर्वा को सबसे पहले लिया जाता है। इस पवित्र घास के बिना, गृहप्रवेश, मुंडन और विवाह सहित अन्य मांगलिक काम अधूरे माने जाते हैं। भगवान गणेश की पूजा में दो, तीन या पाँच दूर्वा अर्पण करने का विधान तंत्र शास्त्र में मिलता है।