हिंदी दिवस पर केन्द्रीय गृहमंत्री बोले -‘हम युगों-युगों तक अपनी भाषा को संभाल कर रखेंगे’

नई दिल्ली

Uttarakhand

केन्द्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित हिंदी दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस अवसर पर अमित शाह ने वर्ष 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान राजभाषा हिंदी में उत्कृष्ट कार्य करने वाले मंत्रालयों, विभागों उपक्रमों आदि को राजभाषा कीर्ति और राजभाषा गौरव पुरस्कार भी प्रदान किए। साथ ही केन्द्रीय गृह और सहकारिता मंत्री ने राजभाषा भारती पुस्तिका के 160वें अंक का विमोचन भी किया। कहा कि हम युगों-युगों तक अपनी भाषा को संभाल कर रखेंगे।

केन्द्रीय गृह और सहकारिता मंत्री ने कहा कि यह पुरस्कार कई लोगों को प्रेरणा देता है और राजभाषा को बढावा देने के लिए आगे बढ़ने का हौसला देता है। उन्होंने ग़ैर-हिंदी पुरस्कार विजेताओं को विशेष बधाई देते हुए कहा कि आप जिस प्रदेश से आते हो, उस प्रदेश की भाषा के साथ-साथ राजभाषा को भी उस प्रदेश में पहुँचाने का आपने बहुत अच्छा काम किया है। उन्होंने कहा कि हिंदी का किसी स्थानीय भाषा से कोई मतभेद नहीं है और हिंदी भारत की सभी भाषाओं की सखी है और यह सहअस्तित्व से ही आगे बढ़ सकती है।

अमित शाह ने कहा कि 14 सितंबर हमारे लिए एक मूल्यांकन का दिन होता है कि हमने अपने देश की भाषाओं और राजभाषा के लिए क्या किया और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए क्या किया है, उसके संरक्षण और संवर्धन के लिए क्या किया है। विशेषकर नई पीढ़ी के दिल में, उनकी बोलचाल में, अपनी स्थानीय भाषाओं को गौरव दिलाने के लिए क्या किया है। उन्होंने कहा कि आज जब हमने पीछे मुड़कर देखते हैं तो देश में एक समय आया था कि हमें ऐसा लगता था कि शायद भाषा की लड़ाई देश हार जाएगा। शाह ने कहा कि हम ये लड़ाई कभी नहीं हारेंगे, युगों-युगों तक भारत अपनी भाषाओं को संभालकर, संजोकर रखेगा और हम उन्हें लचीला व लोकोपयोगी भी बनाएंगे।

अमित शाह ने कहा कि आज़ादी की लड़ाई में  स्वदेशी, स्वभाषा और स्वराज, इन तीन शब्दों ने बहुत बड़ा योगदान दिया और ये आज़ादी की लड़ाई के तीन मूल स्तंभ थे। कहा कि वो जमाना गया जब हिंदी बोलते थे तो होता था कि किस प्रकार से सामने वाला व्यक्ति मेरा मूल्यांकन करेगा। आपका मूल्यांकन आपके कामों के आधार पर ही होगा, आपकी क्षमताओं के आधार पर ही होगा, भाषा के आधार पर नहीं होगा।

अमित शाह ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी भाषा से अच्छी अभिव्यक्ति किसी और भाषा में नहीं कर सकता और ये बात हमें अपनी नई पीढ़ी को समझानी होगी कि भाषा कभी बाधक नहीं हो सकती, हम गौरव के साथ अपनी भाषा का उपयोग करें, झिझकें नहीं। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि देश के युवा इस बात को अपने मन मन में बिठा लें कि हम हमारी भाषाओं को छोड़ेगे नहीं। उन्होंने बच्चों के अभिभावकों से भी कहा कि भले आपका बच्चा अंग्रेजी माध्यम में पढ़ता हो, लेकिन घर में आप उसके साथ अपनी भाषा में बात करने की शुरूआत करिए, नहीं तो वह अपनी जड़ों से कट जाएगा। कोई बाहर की भाषा हमें इस देश के  गौरवपूर्ण इतिहास से परिचित नहीं करा सकती। उन्होंने कहा कि जिस दिन आप अपने बच्चे को मातृभाषा के ज्ञान से वंचित कर दोगे, वो अपनी जड़ों से कट जाएगा और जो लोग अपनी जड़ों से कट जाते हैं वो लोग कभी ऊपर नहीं जाते, ऊपर तो वही जाता है जिस वृक्ष की जड़ें गहरी, मज़बूत और फैली हों।

अमित शाह ने  कहा कि हमारा देश बहुत विविधताओं से संपूर्ण है, बहुत सारे प्रदेश और केन्द्रशासित प्रदेश हैं और सबका अपना-अपना गौरवपूर्ण इतिहास है और ये सब अलग-अलग स्थानीय भाषाओं में है। उन्होंने कहा कि देश के हर प्रदेश का इतिहास जो स्थानीय भाषा में है उसका अनुवाद और भावानुवाद दोनों, राजभाषा में होना चाहिए जिससे एक राज्य नहीं पूरा देश इस इतिहास को पढ़ सके। उन्होंने कहा कि जो संग्राम महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के नेतृत्व में स्वराज के लिए हुआ, जो संग्राम गुजरात में हुआ, उनके बारे में जानने का देश के हर बच्चे को हक़ है और वो ये सब तभी जान सकेगा जब इसका राजभाषा में अनुवाद होगा। उन्होंने कहा कि इसीलिए गुरू रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि भारतीय संस्कृति एक विकसित सतदल कमल की तरह है, जिसकी प्रत्येक पंखुड़ी हमारी प्रादेशिक भाषा की तरह है और कमल हमारी राजभाषा है। उन्होने कितने सुंदर तरीके से हमारी विविधता को एक अलंकृत भाषा में सामने रखने का प्रयास किया है। केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि पूरे आजादी के आंदोलन तक 1857 से 1947 तक भारतीय भाषाओं, राजभाषा में हुई पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान है, हम उसका भी संक्लन करने वाले हैं। कई सारे संग्रामों का इतिहास जो देशभर में 100 सालों तक हुए, उन सभी का इतिहास स्थानीय भाषाओं में है, उनका भी अनुवाद करने वाले है।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीयस्तर पर हिंदी में बोल सकते हैं, तो हमें किस बात पर शर्म आती है? वे दिन गए, जब हिंदी में बात करना चिंता का विषय था।

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