हिमशिखर धर्म डेस्क
एक दौर में अपने प्रवचनों से दुनिया को हिला देने वाले महान विचारक तथा भारतीय आध्यात्मिक गुरु ओशो को कौन नहीं जानता। अपने संपूर्ण काल में ओशो (आचार्य रजनीश) को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे अपनी बात बड़ी बेबाकी से रखते थे बिल्कुल किसी तानाशाह की तरह। ओशो ने हजारों प्रवचन दिए और हर विषय को छुआ। आज इस लेख में ओशो के मौन पर दिए प्रवचन को जानेंगे-
मौन की एक गरिमा है। असल में शब्द भी आक्रमण है। शब्द भी दूसरे पर हमला है। मौन अनाक्रमण है।
सुना है मैंने, वाचस्पति विवाह करके आए। पर वे तो धुनी आदमी थे और बारह वर्षों तक वे तो भूल ही गए कि पत्नी घर में है। कथा बड़ी मीठी है। वाचस्पति लिख रहे थे ब्रह्मसूत्र पर अपनी टीका। वे सुबह से सांझ और रात, आधी रात तक टीका लिखने में लगे रहते। पत्नी को घर ले आए। पिता ने कहा, शादी करनी है। पिता बूढ़े थे। सुखी होते थे। शादी करके घर आ गए। पत्नी घर में चली गई। वाचस्पति अपनी टीका लिखने में लग गए। बारह वर्ष। उन्हें ख्याल ही न रहा, वह जो शादी हो गई, और पत्नी घर में आ गई। वह सब बात समाप्त हो गई।
लेकिन उन्होंने एक निर्णय किया था कि जिस दिन यह ब्रह्मसूत्र की टीका पूरी हो जाएगी, उस दिन मैं संन्यास ले लूंगा। बारह वर्ष बाद आधी रात टीका पूरी हो गई। अचानक वाचस्पति की आंखें पहली दफा टीका को छोड़कर इधर-उधर गईं। देखा कि एक सुंदर-सा हाथ पीछे से आकर दीए की ज्योति को ऊंचा कर रहा है। सोने की चूड़ियां हैं हाथ पर।
लौटकर उन्होंने देखा, और कहा, कोई स्त्री इस आधी रात में मेरे पीछे! पूछा, तू कौन है? पर इतनी देर तू कहां थी? उसने कहा कि मैं रोज आती थी। जब दीए की लौ कम होती, तब बढ़ा जाती थी। दीया सांझ जला जाती थी, सुबह हटा लेती थी। आपके काम में बाधा न पड़े, इसलिए आपके सामने कभी नहीं आई। आपके काम में रंचमात्र बाधा न पड़े, इसलिए कभी मैंने कोशिश नहीं की कि बताऊं मैं भी हूं। मैं थी, और आप अपने काम में थे।
वाचस्पति की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा, अब तो बहुत देर हो गई। क्योंकि मैंने तो निर्णय किया है कि जिस दिन जिस क्षण टीका पूरी हो जाएगी, उसी क्षण घर छोड़कर संन्यासी हो जाऊंगा। अब मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूं। तूने बारह वर्ष प्रतीक्षा की और आज की रात मेंरे जाने का वक्त है। अब मैं उठकर बस घर के बाहर होने को हूं। अब मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूं? वाचस्पति की आंख में आंसू…
उनकी स्त्री का नाम भामती था। इसलिए उन्होंने अपनी ब्रह्मसूत्र की टीका का नाम भामती रखा है। भामती से कोई संबंध नहीं है। उनकी ब्रह्मसूत्र की टीका का नाम भामती से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन अपनी टीका का नाम उन्होंने भामती रखा है।बड़ी अद्भुत टीका है।
वाचस्पति अद्भुत आदमी थे। कहा कि बस, तेरी स्मृति में भामती इसका नाम रख देता हूं और घर से चला जाता हूं। लेकिन तू दुखी होगी। उनकी पत्नी ने कहा, दुखी नहीं, मुझसे ज्यादा धन्यभागी और कोई भी नहीं। इतना क्या कम है कि आपकी आंखों में मेरे लिए आंसू आ गए। मेरा जीवन कृतार्थ हो गया।
इतनी ही बात वाचस्पति की अपनी स्त्री से हुई है। लेकिन यह बारह साल के मौन के बाद ये जो थोड़े से शब्द हैं, इनको हम वाणी कह सकते हैं, वाक् कह सकते हैं। स्त्री के परम मौन से जब कुछ निकलता है! लेकिन उसका परम मौन होना बड़ा मुश्किल है।