शिक्षा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘शिक्ष‘ धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है सीखना या सिखाना। मनुष्य बचपन से ही शिक्षा ग्रहण करता हुआ आता है जैसे परिवार से और विद्यालय से। शिक्षा की मनुष्य में अहम भूमिका होती है। शिक्षा ही बालक को पशुु प्रवृत्ति से बाहर निकाल कर मानवीय गुणों का ओतप्रोत कराती है। चिंता का विषय यह है कि आज के समय में बच्चों की शिक्षा का आंकलन केवल नंबर के आधार पर किया जाता है। अधिक नंबर लाने के लिए बच्चे रट्टू तोते की तरह पढ़ते हैं।
मुनि प्रमाण सागर
हर माता पिता को बच्चे की मार्कशीट पर नंबर तो चाहिए, लेकिन बच्चे ने क्या सीखा, उसके अंदर की क्षमता क्या है, इसके बारे में कोई रिपोर्ट नहीं चाहिए होती। केवल नंबर को ही नहीं देखना चाहिए, क्योंकि जो बच्चे केवल नंबर पाते हैं, वे परीक्षा की जिंदगी में भले सफल हो जाएं लेकिन जिंदगी की परीक्षा में भी सफल हो जाएंगे, इसकी गारंटी नहीं होती। ध्यान रहे कि सिर्फ नंबर हमारी शिक्षा का मापदंड नहीं हैं, सीख हमारी शिक्षा का मापदंड है।
शिक्षा का मतलब है सीखना। यह महत्त्वपूर्ण है कि हमने क्या सीखा, क्या जाना। ज्ञान हमारे भीतर की नैसर्गिक प्रतिभा है। इसे अंकों से जोड़ कर देखने की जो परंपरा चल रही है, अब वह बदलनी चाहिए। नंबर के आधार पर बच्चे को आंकने से बच्चों पर बहुत दबाव बनता है।
समाज में जागृति लाने के लिए एकजुट होना होगा।
“सीख रहे तो सावधान|सीख लिया तो अति सावधान|सिखाराहे तो अत्यंत सावधान” |