पंडित उदय शंकर भट्ट
पितृपक्ष के दौरान महिलाएं भी अपने परिजनों का श्राद्ध और तर्पण कर सकती हैं। श्राद्ध करने की परंपरा को जीवित रखने और पितरों को स्मरण रखने के लिए पुराणों में इसका विधान किया गया है। तपर्ण, पिंडदान और श्राद्ध का कर्म मुख्यतः उनके पुत्रों-प्रपुत्रों या पुरुषों द्वारा किया जाता है। यह भ्रांति है कि तपर्ण या पिंडदान का कर्म महिलायें नहीं कर सकती है।
ग्रंथों में बताया गया है कि परिवार की महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती हैं। इस बारे में धर्म सिंधु ग्रंथ के साथ ही मनुस्मृति, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण का भी कहना है कि महिलाओं को तर्पण और पिंड दान करने का अधिकार है। महिलाएं भी कुछ विशेष परिस्थितियों में श्राद्ध कर्म कर सकती हैं। आइये जानें पौराणिक विधान, नियम व विशेष परिस्थितियों के बारे में:-
विवाहित महिलाओं को है श्राद्ध करने का अधिकार
महिलाएं श्राद्ध के लिए सफेद या पीले कपड़े पहन सकती हैं। केवल विवाहित महिलाओं को ही श्राद्ध करने का अधिकार है। श्राद्ध करते वक्त महिलाओं को कुश और जल के साथ तर्पण नहीं करना चाहिए। साथ ही काले तिल से भी तर्पण न करें। ऐसा करने का महिलाओं को अधिकार नहीं है। खास बात यह है कि श्राद्ध के दौरान अश्रुपात (आंसू नहीं बहने चाहिए) नहीं होना चाहिए।
गरुड़ पुराण: बहू या पत्नी कर सकती है श्राद्ध
पुत्र या पति के नहीं होने पर कौन श्राद्ध कर सकता है इस बारे में गरुड़ पुराण में बताया गया है। उसमें कहा गया है कि ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री भी शामिल है। अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई अथवा भतीजा, भानजा, नाती, पोता आदि कोई भी श्राद्ध कर सकता है। इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुल पुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है। इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों का श्राद्ध, तर्पण कर सकती है।