हिमशिखर धर्म डेस्क
महाभारत में पांडव कई राजाओं को पराजित करके चक्रवर्ती सम्राट बन चुके थे। उन्होंने एक राजसूय यज्ञ आयोजित किया था, उसमें अनेक राजाओं को आमंत्रित किया गया था।
राजसूय यज्ञ के लिए बहुत बड़ी व्यवस्था की जानी थी। कौन व्यक्ति क्या काम करेगा, इस बात का बंटवारा किया जा रहा था। सभी को अलग-अलग काम सौंपे गए थे। पांडव श्रीकृष्ण का बहुत सम्मान करते थे। सभी सोचने लगे कि अब इन्हें क्या काम सौंपा जाए? सभी ने तय किया कि श्रीकृष्ण से ही इस बारे में पूछा जाए।
श्रीकृष्ण ने पांडवों की बात समझते हुए उनसे पूछा, ‘आप बताइए कि अब कौन सा काम बचा है?’
सभी सोचने लगे।
कुछ देर बाद श्रीकृष्ण ही बोले, ‘मैं दो काम करूंगा। पहला, ब्राह्मण और ऋषि-मुनियों के चरण धोऊंगा और भोजन के बाद जो जूठे बर्तन और पत्तल होंगे, वो सब मैं उठाऊंगा।’
राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण ने यही काम किए भी। बाद में श्रीकृष्ण से किसी ने पूछा कि आपने ऐसा काम करने की जिम्मेदारी क्यों ली? आप तो कोई बड़ा भी कर सकते थे।’
श्रीकृष्ण बोले, ‘कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता है। बड़ी या छोटी नीयत होती है। हमें वह काम करना चाहिए, जिसमें सचमुच सेवा का ही भाव हो।
सीख – हम उम्र में और पद में बड़े हों या छोटे, हमेशा ऐसे काम करें, जिनमें सेवा का भाव ही होता है।