काका हरिओम्
स्वामी राम के इष्ट थे श्रीकृष्ण. लेकिन उन्होंने आत्मा का साक्षात्कार करने के बाद अपने इष्ट की लीलाओं की व्याख्या अपने ही ढंग से की है.
कालिया दहन की कथा के संबंध में स्वामी जी कहते हैं कि सारे संबंध स्वार्थ पर टिके हैं. कालिया दह में बालकृष्ण ने छलांग लगाई, तो हो-हल्ला सभी ने किया, पर यमुना के विषैले जल में कोई नहीं कूदा, यहां तक कि यशोदा और नन्दबाबा भी नहीं.
कृष्ण जानते थे कि यमुना के पवित्र जल को विषाक्त करने का स्रोत गहरे में है. उसकी दिशा बदले बिना वह जल अमृत नहीं बन पाएगा. गहराई में उतर कर ही विष को नष्ट किया जा सकता है.साधक को मन की गहराई में उतरना ही होगा.
वहां नाग पत्नियों ने वापस जाने को कहा. कई प्रलोभन दिए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. श्रीकृष्ण का लक्ष्य स्पष्ट था.
कालिया से भयंकर युद्ध हुआ. कुछ देर के लिए शान्ति छा गई.
फिर तो किसी को विश्वास ही नहीं हुआ, जो सबने वहां देखा. कालिया के फन से विष नहीं, रक्त गिर रहा था. वह बुरी तरह थक गया था. कृष्ण बांसुरी बजाते हुए उसके फनों पर नृत्य कर रहे थे. वंशी से निकलते ॐ के पवित्र नाद ने कालिया को विवश कर दिया था. कामनाएं हार चुकीं थीं. नागपत्नियां क्षमा की गुहार कर रही थीं. कालिय वहां से चला गया. कृष्ण ने उसे अभय दान दे दिया.
स्वामी जी के अनुसार, यह आपके अन्तर्मन की लीला है. इस प्रतीक को समझना होगा.