करवा चतुर्थी का व्रत :क्या है करवा चौथ व्रत की कथा? यहां जानें अखंड सौभाग्य के व्रत की महत्ता

Uttarakhand

हर्षमणि बहुगुण

कल अर्थात् चौबीस अक्टूबर को करवा चतुर्थी का व्रत है, यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि जो चन्द्रोदय व्यापिनी हो में किया जाता है, यह स्त्रियों का मुख्य त्योहार है। सौभाग्य बती स्त्रियां अपने पति की रक्षार्थ यह व्रत करती हैं, रात्रि में भगवान शिव, चन्द्रमा, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय आदि के चित्रों एवं सुहाग की वस्तुओं की पूजा करती हैं।

दीवार में पहले चन्द्रमा उसके नीचे शिव कार्तिकेय आदि के चित्र आटे के लेप से चिपकाती हैं तो कोई आटे से ही बनाती हैं। निर्जल व्रत रखती हैं। पीली मिट्टी से गौरा बनाती हैं तथा आपस में चीनी या मिट्टी का करवा बांटती हैं, आदान प्रदान करती हैं।

पाण्डवों पर पहले से ही अनेक विपत्तियां थी, अर्जुन तपस्या हेतु नीलगिरी पर्वत पर गये। शोकाकुल द्रोपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान कर अपने कष्टों के निवारण का उपाय पूछा। श्रीकृष्ण ने द्रोपदी से कहा कि– पार्वती के पूछने पर भगवान शंकर ने उन से कहा कि सभी विघ्नों का नाशक ‘करवा चतुर्थी’ का व्रत है। क्योंकि इस व्रत के करने से व्यक्ति को सौभाग्य, पुत्र पौत्र और धन धान्य आदि सभी प्राप्त होते हैं। कहा कि प्राचीन काल में एक गुणी, धर्मपरायण विद्वान ब्राह्मण जिसके चार पुत्र व एक कन्या थी रहता था, उसकी धर्मपत्नी सुशील थी।

पुत्री के विवाह होने के बाद उसने करवा चतुर्थी का व्रत किया पर चन्द्रोदय से पूर्व भूख से व्याकुल होने के कारण उसके भाइयों ने छल से पीपल की आड़ में कृतिम चांद दिखा कर चन्द्रमा को अर्घ्य दान कर भोजन कर लिया ऐसा करने से उसका पति मर गया, कन्या अत्यधिक दु:खी हुई व अन्न जल त्याग कर रात भर विलाप करती रही, रात को शची जो भूविचरणार्थ आई थी से कन्या ने दु:ख का कारण पूछा तो इन्द्राणी ने कहा कि तुमने चन्द्र दर्शन से पूर्व भोजन किया यदि अपने दु:ख का निवारण करना चाहती हो तो विधिवत करवा चौथ का व्रत करो तो निश्चित तुम्हारे पति पुनर्जीवित हो जाएंगे।

इस तरह उस कन्या ने वर्ष भर प्रत्येक चतुर्थी का व्रत किया व अपने पति को प्राप्त किया। इस आख्यान को सुना कर द्रोपदी से कहा कि यदि तुम इस व्रत को करोगी तो तुम्हारे सभी संकट दूर हो जाएंगे। द्रोपदी ने इस प्रकार व्रत किया और पाण्डवों को विजय श्री प्राप्त हुई। अतः सभी सौभाग्य चाहनेवाली देवियों को यह व्रत करना चाहिए।

श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत्त्रिविधं नरै: ।

अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तै: सात्विकं परिचक्षते ।।

” भगवान विनायक अपने भक्तों को उनकी मन इच्छित वस्तुएं प्रदान करते हैं। एक अन्धी गरीब वृद्धा ने भगवान से प्रार्थना कर ऐसा वर मांगा कि गणेशजी भी आश्चर्य चकित रह गए। उस वृद्धा ने मांगा कि — प्रभो! यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे ” नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें,नाती पोते दें, सब परिवार को सुख देकर अन्त में मोक्ष दें।” गणेशजी वर देकर अन्तर्ध्यान हो गये।

अतः आप सभी भक्त बहिनें, माताएं गणेशजी का व्रत रख कर पूजन कर सब कुछ प्राप्त करने की .अधिकारिणी हैं।” तो कल रखिए उपवास और पाइए अपने पति की लम्बी आयु व अपना अखण्ड सौभाग्य। हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। करवा चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित मंगलमय भविष्य की हार्दिक शुभकामनाएं।

*दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे ।

*देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्विकं स्मृतम् ।।

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