रामायण के सुंदरकांड का प्रसंग है। हनुमान जी लंका की ओर उड़ रहे थे। तब अचानक उन्हें लगा कि कोई उनकी उड़ान को रोक रहा है। हनुमान जी ने पूरी ताकत लगाई, लेकिन उनकी गति रुकने लगी। हनुमान जी ने सोचा कि यहां कोई दिख भी नहीं रहा है तो मेरी गति रुक क्यों रही है? मैं थका हुआ भी नहीं हूं, बिना थकान के मेरी गति कौन रोक रहा है?
हनुमान जी ने नीचे देखा तो वे समझ गए कि समुद्र में कोई है, जो मेरी गति को रोक रहा है। समुद्र के अंदर सिंहिका नाम की राक्षसी थी। सिंहिका आसमान में उड़ते हुए पक्षियों की परछाई को पकड़ लेती थी। उड़ने वाला समुद्र में गिर जाता और सिंहिका उसे पकड़ कर खा लेती थी।
सिंहिका यही काम हनुमान जी के लिए कर रही थी। हनुमान जी ने धैर्य के साथ विचार किया कि दिखाई नहीं देने वाले शत्रु को कैसे पकड़ा जाए और कैसे खत्म किया जाए? कुछ समय बाद हनुमान जी ने सिंहिका को खोज लिया और उसे पकड़कर मार डाला। इसके बाद हनुमान जी आगे बढ़ गए।
सीख – यहां हनुमान जी हमें सीख दी है कि जीवन में जब प्रतिस्पर्धा का समय आए तो किसी से ईर्ष्या न करें। अगर हम खुद ईर्ष्या करेंगे तो खुद की प्रगति रोकेंगे और अगर कोई दूसरा हमसे ईर्ष्या करेगा तो वो भी हमारी प्रगति रोकेगा।
दोनों ही स्थिति में अपने भीतर प्रतिस्पर्धा का भाव तो रखें, लेकिन ईर्ष्या न करें। अगर ईर्ष्या का भाव जागे तो उसे तुरंत खत्म कर देना चाहिए। हनुमान जी की लंका यात्रा में कई लोगों ने बाधा डालने की कोशिश की, लेकिन हनुमान जी ने मारा सिर्फ सिंहिका यानी ईर्ष्या को। हमें भी इस बुराई से बचना चाहिए।