हिमशिखर धर्म डेस्क
सिकंदर यूनान से भारत आया और उसने अपनी विजय यात्रा पूरी की तो उसका बड़ा मन था कि वह भारत से कोई ऐसी चीज लेकर अपने देश ले जाए, जिसे देखकर उसकी रानियां और उसकी प्रजा खुश हो जाए।
सिंकदर ने सोचा कि मैं भारत से किसी साधु को अपने देश ले चलता हूं, क्योंकि यहां के साधु बहुत अनुठे होते हैं। जंगल में उसकी नजर एक साधु पर पड़ी, वह एक चट्टान पर लेटा हुआ था।
सिकंदर उस साधु के पास पहुंचा तो कुछ लोगों ने साधु को सूचना दी कि विश्व विजेता और दुनिया का सबसे बड़े सम्राट सिकंदर महान यहां आए हैं।
सिकंदर के साथ आए लोगों को लग रहा था कि साधु उठकर सम्राट का स्वागत करेगा और पूछेगा कि मैं क्या सेवा कर सकता हूं? लेकिन साधु तो वहां पड़ा रहा और पड़े-पड़े बोला, ‘दुनिया जीतकर क्या कर लोगे, इस खून-खराबे में कुछ नहीं रखा है।’
सिकंदर ने कहा, ‘मैं इस दुनिया पर राज करूंगा। मेरे पास बहुत सारी धन-संपत्ति होगी।’
साधु ने कहा, ‘उसके बाद क्या करोगे?’
सिकंदर बोला, ‘उसके बाद मैं आराम से रहूंगा।’
साधु ने कहा, ‘इतना उपद्रव करके आराम चाहते हो तो हमें देखो, हम तो वैसे ही आराम में हैं।’
साधु इतना कहकर दूसरी ओर करवट लेकर लेट गया। सिकंदर को लगा कि ये तो कुछ अधिक हो गया। सिकंदर ने गुस्से में कहा, ‘देखो तुम अब भी समझ जाओ कि मैं सिकंदर महान हूं।’
साधु बोला, ‘मैं भी डायोजनीज महान हूं।’ उस फकीर का नाम डायोजनीज था। सिकंदर को लगा कि ये कोई बहुत पहुंचे हुए फकीर हैं। सिकंदर बोला, ‘आप तो मेरी कोई सेवा कर नहीं रहे, कुछ पूछ नहीं रहे, मैं ही पूछ लेता हूं कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?’
साधु बोलो, ‘अभी तो तुम यहां से हटो, तुम्हारी वजह से मुझ तक सूर्य की रोशनी नहीं पहुंच रही है।’
सिकंदर को समझ आ गया कि किसी साधु को अहंकार से जीत नहीं सकते।
सीख – जब किसी के जीवन में साधुता आती है यानी जब किसी व्यक्ति का स्वभाव साधु की तरह हो जाता है तो वह हर हाल में चिंता मुक्त रहता है और प्रसन्न रहता है।