हिमशिखर धर्म डेस्क
रुक जाने में यदि विश्राम की मुद्रा है तब तो नुकसान नहीं, लेकिन यदि आलस्य है, निराशा है तो यह अच्छा नहीं होगा। निरंतरता मनुष्य की हर गतिविधि में होना चाहिए। लेकिन, यह भी सच है कि यदि निरंतर काम करें तो विश्राम कब करेंगे। ऐसे सवालों के उत्तर अपने विवेक से पा सकते हैं। विवेक के देवता हैं गणेशजी। व्यासजी को पुराण लिखना थे, तो लेखक के रूप में उन्होंने गणेशजी को आमंत्रित किया।
गणेशजी ने एक शर्त भी रख दी कि बिना रुके लिखवाना पड़ेगा। बीच में कहीं जरा-सा भी रुके तो मैं लिखना बंद कर दूंगा। गणेशजी की इस शर्त में हमारे लिए सबक यह है कि जीवन में हर काम में निरंतरता बनी रहना चाहिए। हम लोगों की आदत होती है कभी बहुत अधिक काम कर लेंगे, कभी बिलकुल नहीं करेंगे। सुबह अच्छे काम करेंगे, शाम को भटक जाएंगे।
ऐसा नहीं होना चाहिए। जीवन में कन्टीन्यूटी बहुत जरूरी है। चूंकि गणेशजी विवेक के साथ-साथ बुद्धि के भी देवता हैं, तो वे समझाते हैं बुद्धिमान व्यक्ति को निरंतरता का महत्व मालूम होना चाहिए। इस बात को लेकर सदैव होश में रहें कि आप कर क्या रहे हैं। यहां होश का मतलब है सजगता कि हमसे कोई गलत काम न हो जाए।