हिमशिखर धर्म डेस्क
जो व्यक्ति अपने जीवन को मानवता की सेवा में समर्पित कर दे, वही सच्चा सेवक है। आज ज्यादातर लोग भौतिक वस्तुओं को पाने के लिए अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं, लेकिन जब वे इस दुनिया से विदा होते हैं तो वे अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा पाते। उनकी सारी कमाई यहीं रह जाती है। अगर वे कोई चीज अपने साथ ले जाते हैं तो वह है उनके अच्छे कर्म और लोगों की दुआएं।
सभी एक ही संदेश देते हैं कि मानवता की सेवा ही सच्चे अर्र्थों में ईश्वर की सेवा है। एक बार स्वामी विवेकानंद जी हिमालय में भ्रमण कर रहे थे। वे एकांत में तपस्या करना चाहते थे। उस समय उन्हें सूचना मिली कि कोलकाता में प्लेग फैल गया है और ये बीमारी अनियंत्रित हो गई है। लोग लगातार मर रहे हैं।
ये सूचना मिलने के बाद विवेकानंद जी ने विचार किया कि मुझे कोलकाता पहुंचना चाहिए। ऐसा सोचकर वे हिमालय से तुरंत ही कोलकाता पहुंच गए।
विवेकानंद जी ने कोलकाता में एक बहुत बड़ा मैदान किराए पर लिया और रोगियों के इलाज के लिए वहां एक विशाल शिविर लगाया, लेकिन उनके सेवकों ने उन्हें सूचना दी कि इस काम में जितना धन चाहिए, उतना धन हमारे पास नहीं है।
स्वामी जी ने सेवकों से कहा, ‘पिछले दिनों हमने अपने मठ के लिए एक भूमि खरीदी थी। अभी वह भूमि और ज्यादा महंगी हो गई है। हमें उस भूमि पर निर्माण करने के लिए धन की आवश्यकता थी। वो धन हम एकत्र कर नहीं पाए तो भूमि अभी ऐसी ही है। अब ये बीमारी आ गई है। मेरी सभी से विनती है कि हमें ये भूमि बेच देनी चाहिए।’
लोगों ने कहा, ‘इस भूमि को हमने बड़ी मुश्किल से खरीदा है। अब आप इसे बेचने की बात कर रहे हैं।’
विवेकानंद जी बोले, ‘इस भूमि को बेचने से जो धन आएगा, वह मानवता की सेवा में काम आएगा। हम लोग तो साधु हैं, संन्यासी हैं, भूमि होती तो कुछ बना लेते, लेकिन भूमि न हो तो पेड़ की छाया में सो जाएंगे। भिक्षा मांगकर खा लेंगे। मठ को जब बनना होगा, तब बनेगा। अभी मानवता की सेवा में परेशानी नहीं आनी चाहिए।’
इसके बाद स्वामी जी ने वो भूमि बेचकर मानवता की सेवा की।
सीख – अगर हमारे पास धन है तो उसे किन कार्यों में खर्च करना चाहिए, ये प्राथमिकता तय करनी चाहिए। सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, मानवता की सेवा। जब कोई महामारी अनियंत्रित हो जाती है तो बहुत सारे लोग उसका सामना नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में जो लोग समर्थ हैं, उन्हें अपना धन मानवता की सेवा में खर्च करना चाहिए।